किसी के दान की आलोचना से कौनसा कर्म बंध?

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शंका

किसी के दान की आलोचना से कौनसा कर्म बंध?

समाधान

यह लोग वो होते हैं जिन्होंने पीछे भी कुछ नहीं किया और आगे भी कुछ नहीं करेंगे। तीव्र पाप कर्म का उदय या तीव्र अन्तराय कर्म के उदय से तो उनकी दशा ऐसी बनती है कि या तो उनके पास होता नहीं है और होता भी है, तो दान देने का भाव नहीं करते और ऐसा कह कर के वह अपने लिए और अन्तराय कर्म का बंध करते हैं। 

धार्मिक कार्यों में विघ्न डालना, दान में विघ्न डालना घोर अन्तराय कर्म के बंध का कारण है। इस तरह की प्रवृत्तियाँ जीवन में कभी नहीं होनी चाहिए। मैं तो यही कहूँगा,“धार्मिक कार्यों के अनुमोदक बनो, आलोचक नहीं।”

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