तीर्थ-यात्रा या दान, क्या ज्यादा महत्त्वपूर्ण?

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शंका

तीर्थ-यात्रा या दान, क्या ज्यादा महत्त्वपूर्ण?

समाधान

आगम में ऐसा बताया गया है कि भगवान की पूजा करना बहुत अच्छा कार्य है और उसमें नित्य महापूजा, नित्य पूजा के अन्तर्गत लिया गया है और उसमे यह कहा गया है कि व्यक्ति नित्य पूजा करता है, जीवन भर पूजा करता है और पुण्य उपार्जन करता है पर एक व्यक्ति यदि जैन मन्दिर का निर्माण करता है, भगवान की प्रतिमा विराजमान करता है, भगवान के पूजा-अर्चना की व्यवस्था के लिए अपने द्रव्य का दान देता है, मन्दिर में उपकरण देता है, मन्दिर के रखरखाव की व्यवस्था में सहभागी बनता है, तो यह भी नित्य पूजा है। एक आदमी नित्य पूजा मात्र कर रहा है, तो केवल एक मन्दिर में एक घंटा पूजा कर रहा है और एक व्यक्ति १०० मन्दिरों की पूजा व्यवस्था बनाए रखने के लिए दान दे रहा है, तो १०० मन्दिर के पूजा का पुण्य लाभ प्राप्त कर रहा है। 

जो तीर्थ यात्रा कर रहा है वह केवल तीर्थ यात्रा का पुण्य पा रहा है और जो तीर्थ यात्रा की जगह तीर्थों के निर्माण, मन्दिरों के निर्माण और ऐसे सत कार्यों में दान दे रहा है, तो उसके दान का फलस्वरूप जितने तीर्थयात्री पूजा वंदना कर रहे हैं उनका एक हिस्सा पुण्य भी पा रहा है। तो दान की अपनी महिमा है। दान करो और तीर्थ यात्रा करो; दोनों करो। लेकिन आप पूछो कि तीर्थ यात्रा और दान में वरीयता किसे दें? तो मैंने आपको जो उत्तर दिया उस हिसाब से दान की महिमा उससे ऊपर है। तीर्थ ही नहीं तो यात्रा कैसे करोगे।

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