समवसरण में अन्य केवली कहाँ विराजते हैं?

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शंका

महाराजश्री समवसरण की रचना केवली भगवान के लिए होती है। लेकिन उस समवसरण में अन्य भगवान भी विराजमान रहते हैं। समवसरण में, उनकी क्या व्यवस्था रहती है?

समाधान

तीर्थंकर भगवान के लिए समवसरण रचा जाता है, केवली भगवान के लिए नहीं। तीर्थंकरों का समवसरण होता है। ऐसा उल्लेख आता है कि तीर्थंकरों के समवसरण में केवली भी होते हैं और इस प्रश्न पर काफी विद्वानों के बीच उहापोह हुई कि-आखिर समवसरण के श्री मण्डप में जो बारह कोठे होते है वहाँ मुनियों की सभा बताई, केवलियों की सभा नहीं और गणधर आदिक मुनियों का उल्लेख हुआ, केवली का नहीं, तो अब वहाँ रहते हों तो केवली भगवान तो निश्चित रूप से गणधरों से आगे रहते होंगे। लेकिन इनका कोई विधायक सूत्र नहीं मिलता है। ये मिलता है कि सप्तम भवन भूमि में केवली अपनी गन्धकुटी में विराजमान रहते हैं। भगवान आदिनाथ के समवसरण में बाहुबली का केवलज्ञान रूप के उपरान्त जाने का उल्लेख मिलता है। विद्वानों ने इस पर काफी उहापोह किया। कुछ लोगों को ये बात पची नहीं लेकिन उल्लेख है। इसलिए हम इसको नकार नहीं सकते तो ये केवली भगवान के जाने का उल्लेख है समवसरण में जाने का उल्लेख है। हम इसका ऐसा अर्थ लें कि वह समवसरण में साक्षात् भगवान के शरण में न जा करके भव्यपूर्व जो सप्तम भोगी भवन भूमि में होता है, वहाँ जा सकते हों, तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसमें कुछ अलग बात नहीं है। लेकिन मैं अवधारणात्मक रूप से ये नहीं कह सकता कि वो बारहवीं श्री मण्डप भूमि में जाते हैं या नहीं जाते हैं। पर समवसरण में जाते हैं इसका उल्लेख तो मिलता है। अब ये भी हो सकता है कि किन्हीं मुनि महाराज को भगवान के दिव्य ध्वनि सुनते-सुनते केवल ज्ञान हो जाये तो वो केवली का वहाँ होना सम्भव हो सकता है। इसमें कोई बुराई नहीं है। हर तीर्थंकर के समवसरण के साथ केवलियों की जो संख्या दी गयी है, उसको इसी SENSE (दृष्टि) में लेना कि उनके तीर्थ काल में जितने मुनियों को केवलज्ञान हुआ वे केवली; ऐसा मत समझना कि वे सदैव उनके साथ चलते हों। सहमुक्त में भी ऐसे ही मानना क्योंकि कई भगवानों की सहमुक्तों की संख्या बहुत अधिक है जबकि एक साथ छ: सौ आठ से अधिक मोक्ष नहीं जा सकते, वह भी छ: माह आठ समय में। तो कुछ की सहमुक्तों की संख्या अधिक है। उनके तीर्थंकाल के दौरान जो मुक्त हुए, उनका आशय लेना चाहिए।

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