“मिच्छामि दुक्कडम्” कब, कहाँ और क्यों बोलना चाहिए?
“मिच्छामि दुक्कडम्” तब बोलना चाहिए जब हम से न जानते हुए अनजाने में कोई गलती हो गई हो, तब कहो मेरे द्वारा किया दुक्कडम् यानि दुष्कृत यानि ये खोटा कार्य मिच्छामी यानि मिथ्या हो। आप लोग बोलते हो न अंग्रेजी में धीरे से एक्सक्युज मी, सॉरी। इसी तरह हमारे द्वारा कोई गलत कार्य हो जाये तो उस गलत कार्य के निवारण के लिए मिच्छामी दुक्कडम् बोलते है कि मेरा वो पाप दूर हो लेकिन जानबूझ कर गलती करे तब नहीं। एक कहानी सुनो – एक मुनि महाराज छोटी उम्र में मुनि बन गए। धूप में बैठ कर सामायिक कर रहे थे, सामने कुम्हार का घर था। कुम्हार ने बड़े- बड़े मटके बनाकर रंग करके उन्हें धूप में सुखा रखा था। 11-12 साल के मुनि महाराज को उनके गुरु ने बताया था कि कोई पाप हो जाएँ तो मिच्छामी दुक्कडम् कर लो तो पाप साफ़ हो जायेगा। उनको शरारत सूझी और एक पत्थर उठाया एक मटके की ओर फेंका और कहा – तस्य मिच्छामी दुक्कडम्। कुम्हार ने देखा, सोचा ठीक है, साधु है कुछ हुआ होगा। मुनि ने फिर एक पत्थर उठाया और मटके पर दिया और कहा तस्य मिच्छामी दुक्कडम्। तीसरी बार जब मुनि ने पत्थर से मटके को तोड़ा तो कुम्हार से रहा नहीं गया बोला, महाराज आप कर क्या रहे हो? कुछ नहीं हमारे गुरु ने कहा पाप करने के बाद मिच्छामी दुक्कडम् कहो तो पाप साफ़ हो जाता है। कुम्हार को आया गुस्सा उसने अपना लट्ठ उठाया और महाराज के सिर पर मारा फिर कहा मिच्छामी दुक्कडम्। ऐसा नहीं करना।
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