जब महावीर भगवान कि दिव्यध्वनि 66 दिन नहीं खिरी तो वो क्या करते थे?

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शंका

महावीर भगवान की दिव्यध्वनि 66 दिन तक नहीं खिरी। जब वे शुभ ध्यान में थे तो क्या उस समय कुछ संकल्प-विकल्प मन में आते हैं? अरिहंत भगवान की दिव्यध्वनि 4 बार खिरती है (24 घंटे में) उसके बीच में फिर क्या?

समाधान

पहली बात तो जहाँ तक भगवान के मन के संकल्प-विकल्प की बात है, संकल्प-विकल्प उनका होता है जो मन के धरातल पर जीते हैं। जो मन के ऊपर उठ गए हैं, उनके अन्दर कोई संकल्प-विकल्प नहीं। उन्होंने मन को जीत लिया, मन से ऊपर उठ गए इसलिए उनके अन्दर किसी भी प्रकार का संकल्प-विकल्प नहीं। उनकी जो भी प्रवृत्तियाँ होती हैं, वह इच्छा पूर्वक नहीं होती। वह सहज संयोगवश होती हैं। 

कायवाक्यमनसां प्रवृत्तयोना
भवंस्तव मुनेश्चिकीर्षया।
नासमीक्ष्य भवतः प्रवृत्तयो
धीर! तावकमचिन्त्यमीहितम्।।

‘हे भगवान आपके मन-वचन-काय की प्रवृत्तियाँ इच्छा पूर्वक नहीं हुईं। बिना इच्छा के होने के बाद भी यद्वा-तद्वा नहीं हुई। यह आपकी बड़ी अचिन्त्य महिमा है’

तो भगवान की वाणी इच्छा पूर्वक नहीं खिरती। उनकी कोई भी प्रवृत्ति इच्छा पूर्वक नहीं होती। 66 दिन तक उनकी वाणी न खिरने के कारण का निरूपण करते हुए आचार्य वीरसेन महाराज ने लिखा- 

क्यों नहीं खिरी? – गणहरा अभावा

गणधर का अभाव था। उनकी वाणी को समझने और स्वीकार करने लायक कोई योग्य पात्र नहीं था। पात्र के अभाव में वे अपने उपदेशामृत की वर्षा कैसे करते? यूँ कहें हम सबका पुण्य उस समय इतना अनुकूल नहीं था कि हम भगवान के उस उपदेशामृत का लाभ ले सकें।

भगवान की जिस समय वाणी नहीं खिरती, उस समय वे क्या करते हैं? भगवान 24 घंटे अपने में ही रहते हैं। वे आत्मज्ञ हैं, सर्वज्ञ हैं, मात्र जानते और देखते हैं। जिस समय उपदेश करते रहते हैं, उस समय भी वे वहीं रहते हैं। जिस समय वह स्थिर रहते हैं उस समय भी वे वहीं रहते हैं क्योंकि जिसका ज्ञान चंचल होता है उसके लिए संकल्प-विकल्प होते हैं। जिसने पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर लिया, जिसका ज्ञान स्थिर हो गया, उसके अन्दर किसी भी प्रकार का संकल्प-विकल्प नहीं। उन्होंने मन के पार जाकर चेतना का विस्तार कर लिया है और वे चेतना के स्तर पर जीते हैं। इसलिए वहाँ यह प्रश्न ही नहीं उठता।

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