सच कब बोलें?

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शंका

ग्रहस्थों को यदि सच बोलना पड़ता है तो अपयश क्यों मिलता है?

समाधान

सच बोलने से अपयश मिलता है, यह बात मुझे समझ में नहीं आती है। लेकिन सच को अगर आप गलत तरीके से और गलत प्रसंग में बोलेंगे तो अपयश ज़रुर मिलेगा। हमारा धर्म कहता है कि सच बोलो यही पर्याप्त नहीं है ।

सत्यम  ब्रूयात, प्रियम ब्रूयात  न ब्रूयात सत्य अप्रिय, न नृत्यम च प्रियम ब्रूयात ऐसा  धर्म सनातन । 

सच बोलें, अप्रिय सच ना बोलें और प्रिय झूठ  न बोलें। ये शाश्वत सत्य है। सच बोलने से अपयश मिलता है या दूसरे की आलोचना का शिकार बनना पड़ता है ऐसा नहीं है, समीक्षा करके देखें कि कहीं आप गलत तरीके से या गलत प्रंसग में  तो सच नहीं बोल रहे। इसलिए बोलने से पहले सावधानी रखें जहाँ ऐसी सम्भावना हो कि सच बोलने से बवाल खड़ा होता है, तो वहाँ मौन रहना ज्यादा अच्छा है।

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