पंचकल्याणक महोत्सव में भगवान के माता-पिता बनाने की परिपाटी कब शुरू हुई?

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शंका

पंचकल्याणक महोत्सव में भगवान के माता-पिता बनाने की परिपाटी कब शुरू हुई?

समाधान

देखिए, यह बात बहुत स्पष्ट है कि प्रायः प्रतिष्ठा पाठों में माता-पिता को बनाने की परम्परा वर्तमान में उपलब्ध प्रतिष्ठा पाठों में नहीं मिलते। मुख्यतः जब हम प्रतिष्ठा पाठ का अवलोकन करते हैं, तो उसमें केवल २ की ही चर्चा आती है: कारापक और एक सौधर्म इन्द्र।

अन्य किसी पात्र के निर्धारण की बात नहीं आती। पर इन सारे पात्रों का चयन धर्म की प्रभावना के लिए होता है। तो जब अन्य पात्रों के लिए प्रश्न नहीं उठाते, तो माता-पिता के लिए प्रश्न उठाने का कोई औचित्य नहीं है। कुछ चीजें हैं जो परिपाटी से चली आ रही हैं और उससे लोगों की भाव विशुद्धि बढ़ती है, सौभाग्य प्राप्त करते हैं और मैंने देखा है जो लोग भगवान के माता-पिता बनते हैं उनके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। इसलिए अब इन सब पर निषेध करने का कोई औचित्य नहीं दिखता।

श्वेताम्बर परम्परा में मैंने देखा: वहाँ तीर्थंकरों के पञ्च अंजन शलाका में, प्रतिष्ठा विधि में सौधर्म इन्द्र, माता-पिता और भगवान की बुआ इन तीन का ही चुनाव होता है, बाकी का नहीं। हमारे प्रतिष्ठा पाठ में कारापक, जो मन्दिर बनाता है और सौधर्म इन्द्र की ही चर्चाएँ हैं। अब ये माता-पिता के बनाने का चलन कब से आया, यह शोध का विषय है। पर, मैंने अपने जीवन में जितने भी पञ्चकल्याणक देखे हैं, सभी में माता-पिता बनते देखें हैं। इसलिए मैं और उससे आगे कुछ नहीं कर सकता।

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