वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा का क्या परिणाम होगा?

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शंका

दादा-दादी हमें मम्मी पापा से ज़्यादा प्यार करते हैं, उनको जो माँगो वो झट से ला कर देते हैं।  फिर भी कई लोग अपने दादा-दादी को वृद्धाश्रम में क्यों छोड़ जाते हैं?

समाधान

बहुत दुःख की बात है। बच्चों के लिए दादा-दादी का जितना प्यार मिलता है शायद माँ- बाप का नहीं मिलता, इसने अपने जीवन के अनुभव को यहाँ प्रकट किया होगा। लेकिन आज उन्हीं दादा-दादी को घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। 

मैं एक घटना जानता हूँ, उस समय ‘ओल्ड एज होम’ (old age home) का चलन नहीं था, एक व्यक्ति ने अपने पिता को अपने घर की चौथी मंजिल पर पहुँचा दिया। पिता अशक्त था, पहले तो उसे दुकान से दूर किया, घर में बैठ गया पिता। घर के पहले दरवाजे पर रहा तो उनकी धर्मपत्नी को आजादी में बाधा दिखने लगी। चाहे जब जाना चाहे जब आना, चाहे जिसके साथ मिलना-जुलना- सब खत्म हो गया तो अपने पति से शिकायत की कि ‘कहाँ बिठा दिए हो, बाहर बैठते हैं, पूरा आंगन थूक-थूक कर गंदा कर देते हैं, इनके चक्कर में हमें आने जाने को भी नहीं मिलता; और कोई भी आता है, तो उससे उल्टी-सीधी बातें करते हैं। इनकी अक्ल घिस गई है इनको आप अन्दर के कमरे में कर दें।’ पति ने पत्नी की बात सुनी और पिता से कहा – ‘पापा आप यहाँ रहते हो, बहुत डस्ट उड़ती है, आप कफ के शिकार हो, आपको काफी इंफेक्शन है, आप अन्दर के कमरे में रहो।’ अन्दर के कमरे में गए तो उनको रात में नींद नहीं आती थी। खाँसी चलती थी, जब रात में खाँसते थे तो उनकी बहुरानी डिस्टर्ब हो जाती थी। एक दिन अपने पति से बोली ‘कहाँ रख दिए इनको, रात भर खाँसते हैं न खुद सोते हैं न हम को सोने देते हैं। इनको चौथे मंजिल पर ले जाओ।’ ‘वृद्धावस्था में इनको चौथे मंजिल पर ले जाएँगे, इनके खाने-पीने के लिए बार-बार नीचे आना होगा, कैसे होगा?’ ‘उसकी चिन्ता मत करो, हम लोग ऊपर पहुँचा देंगे। ऊपर पहुंचाएँगे, एक बार, दो बार पहुचाएँगे इनकी अपनी कोई रिक्वायरमेंट होगी तो घंटी लगा देंगे। घंटी बजा देंगे तो हम सामान दे आयेंगे।’ पत्नी की बातों में पति आ गया और अपने पिता के चौथे मंजिल पर ले गया कि ‘पापा आप वहाँ रहिए, आपको बहुत अच्छा रहेगा, एक घंटी रख दी।’ अब पिता अपने जीवन के दिन बिताता, जब कोई जरूरत पड़ती तो घंटी बजाता और चीज वहाँ पहुँच जाती। घर में सब लोग निश्चिंत थे। उनका पोता अपने दादा से मिलने आता और खेलता। एक दिन खेलते-खेलते वह दादा की घंटी लेकर गया तो आया नहीं। इधर दादा निरूपाय! पोता एक बार गया, अब तो किसी को जाना नही, घंटी बजी नहीं। तीन दिन बाद जब बेटा बाहर से लौटकर आया तो अपनी पत्नी से पूछा ‘पापा की स्थिति क्या है?’ बोली- ठीक ही होंगे। ३ दिन से उन्होंने कोई रिक्वायरमेंट्स नहीं करी। ‘तीन दिन से उनने घंटी नहीं बजाई और तुमने कोई चिन्ता नहीं की, तुमने  जाकर देखा क्यों नहीं?’ पापा ने घंटी क्यों नहीं बजाई? अब बेटे से रहा नहीं गया, ऊपर गया तो पता लगा उनके पिता का प्राणान्त हो चुका था और प्राण भी २ दिन पहले निकल गए। हक्का-बक्का रह गया! आखिर घंटी क्यों नहीं बजाई? इधर-उधर देखा तो घंटी नहीं, घंटी कहाँ गई? घंटी की खोज करने लगे, घंटी नहीं दिखे, घंटी कहाँ, घंटी कहाँ, तभी उनका नन्हा बेटा पूछा- ‘पापा क्या खोज रहे हो?’ घंटी, दादा की घंटी कहाँ गई? घंटी तो मेरे पास है और तुरन्त घंटी निकालकर दे दी। ‘ये घंटी तू क्यों ले गया था?’ ‘मैंने सोचा आपने तो दादा की घंटी के व्यवस्था कर ली, जब आप बूढ़े होंगे तो मुझे भी घंटी लानी पड़ेगी तो मैं कहाँ से घंटी लाऊँगा? इसलिए घंटी ले कर यहाँ रख दी।’

जो अपने वृद्ध माता-पिता के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं उन्हें इस तरह की घटना के लिए तैयार होना पड़ेगा। इसलिए चाहते हो खुद के घर में खुशहाली तो अपने जीवन में माँ-बाप के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव रखो।

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