जैन धर्म के विपरीत कोई बोले तो क्या करें?

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शंका

स्कूल में या अलग जगह में कोई हमारे मुनि और धर्म के प्रति कुछ बुरा बोले तो हमें क्या करना चाहिए?

समाधान

देखिये, यह बच्चों का दोष नहीं है। दोष आप सब का है। खासकर जैन धर्म और जैन मुनि के बारे में लोगों को जब तक पर्याप्त जानकारी नहीं हो तब तक सच्चे अर्थों में जैन धर्म की प्रभावना नहीं हो सकती इन बच्चों को हमें बचपन से सिखाना चाहिए कि जैन धर्म क्या होता है, जैन मुनी क्या होता है। यद्यपि यह जन्मजात संस्कार होते है हमारे बच्चों में, जो अपने धर्म के  विरुद्ध कोई भी बात को स्वीकार नहीं करते उनको वह बात हजम नहीं हो पाती उनका वह जवाब भी देते हैं और उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव भी रखते हैं। 

मैं एक बहुत पुरानी बात बोल रहा हूँ। घटना 1990 की है। मैं मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में था जबलपुर के पास एक खितौला। सर्दी का समय था। और सर्दी की अचानक अधिकता मौसम बिगड़ जाने के कारण हम लोगों का वहाँ तीन दिन का प्रवास हो गया। वहाँ दो छोटी छोटी बच्चियाँ आती थी। दो ढाई साल की। उसमें एक जैन बच्ची थी और दूसरी उनके यहाँ के किराएदार ब्राह्मण की बेटी थी। दोनों बच्चे दिन में जब मंदिर के बगल में उनका घर था जहाँ हम लोग रुके उसके जस्ट बाजू में उनका घर था। वह बच्चे दिन में कई बार आ जाते थे। और आए तो जो ब्राह्मण की बेटी थी वह कहती थी “ऐ नंगे महाराज, नंगे महाराज”। हम लोगों को वह नंगे महाराज बोलती थी।  वह जैसे ही हम लोगों को नंगे महाराज बोले तो वह जैन बच्ची उसकी चोटी खींचे और बोले “नंगे महाराज नही, मुनि महाराज बोलो”। मैंने कहा यह है संस्कार। ढाई बरस की वह अबोध बच्ची के मन में भी यह है पता है कि मुनि महाराज क्या होते हैं। तो माँ बाप को चाहिए अपने बच्चों के दिल दिमाग में इस बात को अच्छी तरीके से बैठाये कि धर्म क्या है, धर्म का महत्व क्या है, गुरु क्या हैं, गुरु की गरिमा क्या हैं। उनके स्वरूप को बताएं। यह बच्चे जिस क्षेत्र से है जबलपुर के बगल में है पाटन, जिधर मुनियों का हमेशा आवागमन होता है। साधु संतों का समागम होता हैं । और जहाँ दिगंबर जैन मुनियों की असाधारण प्रतिष्ठा हैं। उस इलाके के बच्चों के साथ भी यदि ऐसी परिस्थितियाँ  निर्मित होती है, इसका मतलब हम लोग जैन धर्म की प्रभावना में कहीं बहुत पीछे हैं। इसके लिए जागरूकता चाहिए। लोगों के यह समझ विकसित करने की आवश्यकता है कि जैन मुनी क्या होते हैं। इस धरती पर जैन मुनि जैसी कठोर साधना हर किसी के बस की बात नहीं है।

बच्चे, जब भी तुमसे कोई जैन मुनि के बारे में कहें तो तुम उसकी बात का बेझिझक जवाब दो। और उनसे कहो कि जैन मुनि भगवान का ही एक रूप होता है। इस धरती पर जीते जागते  भगवान की तरह होते हैं। जैन मुनि का स्वरूप ऐसा वैसा नहीं होता। नग्न दिगंबर मुद्रा को धारण करके सर्दी गर्मी बरसात की बाधाओं को सहना प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ रूप है। 

जब भी लोग कुछ कहें तो उन्हें ठीक ढंग से समझाने की  कोशिश करो। पहले खुद समझो फिर लोगों को समझाने की बात सीखो। अगर किसी व्यक्ति को दिगंबर जैन मुनि कि इस दिगंबर मुद्रा को लेकर तकलीफ होती है तो उनसे पूछो कि आखिर इसमें तुम्हें तकलीफ क्या है। यह दिगंबर मुद्रा कोई हंसी खेल की बात है? सब प्रकार की सर्दी गर्मी की बाधाओं को सहन  करना नग्न दिगंबर मुद्रा को धारण करते हुए निर्विकार होकर विचरण करना कोई हंसी खेल की बात नहीं। उन्हें जैन मुनि की वास्तविक चर्या का बोध कराने की आवश्यकता है कि एक्चुअल में जैन मुनी है क्या? लोगों के मन में जैन मुनि के वास्तविक स्वरूप का सही ज्ञान नहीं है। कई लोग यही सोचते हैं कि जैन मुनी केवल कपड़े नहीं पहनते। जब उनको उनकी चर्या का बोध आप कराओगे तब समझ में आएगा कि जैन मुनी क्या होते हैं।  

बंधुओं, मैं आपको बताऊँ, जब आचार्य गुरुदेव पहली बार अमरकंटक गए १९९४ में। वहाँ के बहुत सारे साधु और महंतगण संघ की अगवानी के लिए आए। सर्दी कड़ाके की थी। १५ जनवरी का दिन था। नीचे बादल और उपर हम लोग चल रहे थे। वहाँ के साधु गण ओवरकोट पहने हुए संघ की अगवानी के लिए आए। और इस दिगंबर मुद्रा को देखकर सब लोग मुग्ध हो उठें। सोचा रात में तो कंबल ओड़ते होंगे, अग्नि का प्रयोग करते होंगे, आगी तापते होंगे। रात में आकर उनने निरीक्षण किया तो ऐसी ही हमारे संघ के अधिकतर मुनिराज चटाई भी नहीं लेते और ऐसे ही केवल तखत पर। देखकर वह आश्चर्यचकित हो गए। ठंड इतने कड़ाके की थी कि दूसरे दिन सुबह ७:४५ बजे कार की बोनट पर पौन इंच की बर्फ की परत जमी हुई थी। सब के सब हतप्रभ हुए। वहाँ के आयोजनों में वहाँ के जितने प्रतिष्ठित संत गण थे वे समय-समय पर आए और उन्हें जो उद्गार व्यक्त किए मैं आप सब को बताना चाहता हूँ। वहाँ के कल्याण बाबा थे उन्होंने कहा कि त्याग और तपस्या का की जो मुरत दिखाई पड़ती है वह सिर्फ दिगंबर संतों में ही दिखाई पड़ती है। वहाँ के एक दूसरे संत थे सुखदेवानंद सरस्वती। उन्होंने कहा कि आप ने भगवान के दर्शन किए या नहीं यह ज्यादा मूल्यवान नहीं। यह जो जीवित भगवान बैठे इनका जो दर्शन कर लिया वह भाग्यवान है। एक मौनी बाबा थे। उन्होंने कहा कि दुनिया में जितने भी सागर है सब खारे हैं। पर यह विद्या का सागर है जो सब तरफ से मीठा है, सबको तारने वाला है। यह उद्गार अनायास नहीं निकले। यह उदगार उसके ही ह्रदय से निकलते है जो जैन साधु के स्वरुप को ठीक ढंग से जानता है।

बच्चों को यह समझाना चाहिए कि दिगंबर साधु क्या होता है। उनको बोलो कि जैन साधु का स्वरूप कितना उत्कृष्ट है, २४ घंटे में एक बार भोजन करना पानी पीना, सारी जिंदगी पैदल चलना, सब प्रकार की बाधाओं को बर्दाश्त करना, अपने हाथों से केशों का लुंचन करना कोई हंसी खेल की बात नहीं है। जब लोगों को यह पता चलता है तो लोगों का चित्त परिवर्तित हो जाता है। मन प्रमुदित हो उठता है। इसलिए इस बात को समझाने की जरूरत है। जैन मुनि की चर्या लोगों को बताएं। जैन धर्म का परिज्ञान कराएं। और यह तब संभव हो जब बच्चों को शुरू से पाठ शालाओं में भेजा जाए, धर्म के वास्तविक स्वरूप का उन्हें ज्ञान कराया जाए, माँ बाप को भी इसके विषय में जानकारी हो। 

जब जैन धर्म के बारे में आपको कोई कुछ बोले तो आप यह कहे कि एकमात्र जैन धर्म ही ऐसा धर्म है जिस में किसी प्रकार का आडंबर नहीं और हर जीव के कल्याण की बात करता है। जियो और जीने दो का संदेश देता है। आत्मा को परमात्मा बनने की बात करता है। जो हमारे आचार और विचार को निर्मल बनाने की प्रेरणा देता है, ऐसा धर्म है। और जब उन लोगोंको संयुक्तिक ढंग से समझओगे तो वह चुप हो जाएंगे। अगर कोई बोलता है और समझना चाहता है तो उनको ठीक ढंग से समझाओ और उसके बाद भी कोई बहस करना चाहे तो उससे बोलो कि तुम धर्म के बारे में हम से कुछ मत बोलो। अपनी बातें मुझ से करना है तो करो नहीं तो हमारी तुम्हारी दोस्ती खत्म।

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