अन्य धर्मों के कार्यक्रमों में बच्चे दुविधा में पड़ जाते हैं, क्या करें?

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शंका

अन्य धर्मों के धार्मिक कार्यक्रमों के लिए हम अपने बच्चों को यह समझा देते हैं कि वहाँ पर सर न झुकाएँ, प्रसाद न लें, वहाँ पर न जाएँ। बच्चे तो समझ भी जाते हैं लेकिन अपने दोस्तों के सामने वे थोड़ा शर्मिन्दा महसूस करते हैं, उनको क्या जवाब दें?

समाधान

हमें बच्चों को यह नहीं सिखाना चाहिए कि हम यहाँ जाएँ, वहाँ न जाएँ। बल्कि हमें यह सिखाना चाहिए कि हमारा मूल धर्म क्या है। हमारा मूल धर्म अहिंसा है, हम अहिंसा को प्रणाम करते हैं हिंसा को नहीं। तो जहाँ हिंसा हो किसी भी प्रकार से, अस्त्र-शस्त्र आदि से वहाँ सिर न झुकाएँ, क्योंकि हमारी दृष्टि में हिंसा पाप है। पाप की अनुमोदना करने से पाप लगेगा। जहाँ राग हो, उसकी उपासना न करें, क्योंकि राग की उपासना करने से संसार बढ़ेगा। बच्चों के दिल-दिमाग में ये बातें बिठा देने से हिंसा और राग से बचने की भावना बढ़ेगी और यह भावना बढ़ने से वे अपने-आप अपने मार्ग में स्थिर हो जाएँगे। अन्यथा अनावश्यक एक सांप्रदायिक कट्टरता पैदा होगी। उन्हें कट्टर नहीं, व्यवहार कुशल बनाना चाहिए।

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