ग्रहस्थ व्रती को वैराग्य बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए?

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शंका

गृहस्थ व्रती को परिवार में रहते हुए संवेग और वैराग्य भावना बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिये?

समाधान

गृहस्थ व्रती अगर परिवार में है, तो सबसे पहले तो मैं ये बताऊँगा, हर व्रती को, अपने व्रतों का निर्वाह करना चाहिए और अव्रतियों के मामलों में इंटरफेयर नहीं करना चाहिए। आप घर में शांति और अपने व्रतों का निर्वाह पालन करना चाहते हैं तो उसका फॉर्मूला दे रहा हूँ। 

पहला काम- मैं अपने व्रतों का पालन करूँ और अव्रतियों के किसी मामले में इंटरफेयर न करूँ, भावना भाऊँ कि वे भी सही रास्ते पर चलें पर उन्हें घसीटने का काम न करूँ, खींचने का काम न करूँ। अपने संवेग और वैराग्य भाव को बढ़ाए रखने के लिए नियमित स्वाध्याय करना चाहिए। संसार शरीर और भोंगों का बार-बार चिन्तन करना चाहिए। आचार्य उमा स्वामी के मार्ग दर्शनानुसार “जगतकाय स्वभाव वा संवेग वैराग्यार्थम” की युक्ति को चरितार्थ करनी चाहिए।अगर आप ऐसा करें तो आपका काम बहुत अच्छा होता है। 

साथ ही गृहस्थों को जो गृहस्थी में रहते हैं, जिन्होंने अपने आपको व्यापार-व्यवसाय से मुक्त कर लिया, उन्हें अब घर के काम में और व्यापार के कामों में कम से कम रुचि रखना चाहिए। अपने आपको घर के मालिक की तरह न रहकर, मेहमान की तरह न महसूस करना चाहिए कि ‘हम चार दिन के हैं, वो जाने उनका काम करें और हमें ज़्यादा कुछ नहीं करना’; और ज़्यादा अगर कुछ करना भी है, तो मार्गदर्शक बनिए मार्ग निर्णायक न बनिये। अगर ऐसा आप करेंगे, आपका चित्त सदैव निर्मल बना रहेगा, संक्लेश कभी नहीं होगा।

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