माता-पिता की लड़ाई के समय बच्चें क्या करें?

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शंका

जब मम्मी-पापा में लड़ाई हो जाती है, तो बच्चों को ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए?

समाधान

ये बहुत गम्भीर मामला है, प्रायः मम्मी-पापा में लड़ाई होती है। एक बार ऐसा हुआ कि मम्मी-पापा में अपने बच्चों को लेकर कुछ विवाद छिड़ा हुआ था कि इसको क्या बनाएँ? मम्मी कह रही थी कि हम अपने बेटे को डॉक्टर बनायेंगे, तो पापा कह रहे थे कि हम अपने बेटे को वैज्ञानिक बनायेंगे। दोनों चलते गये, बातचीत जब ज़्यादा बढ़ती गयी तो बेटे ने कहा कि न मैं डॉक्टर बनूँगा और न ही वैज्ञानिक बनूँगा, तो बोले फिर क्या बनोगे? तो बच्चा बोला कि मैं वकील बनूँगा। बोले क्यों? बोला कि “मैंने लक्षण देख लिया, आज जब आपकी लड़ाई चल रही है, भविष्य में divorce (तलाक) होगा तो केस कौन संभालेगा?” ये आज की राम कहानी है। बच्चे पर क्या impression (असर) पड़ता है? सोचो! जिस बच्चे ने ये प्रश्न किया है, निश्चित रूप से उसने ऐसी स्थिति देखी होगी। सबसे पहले माँ-बाप को चाहिए कि आपस में कलह न करें और कलह करें तो बच्चों के सामने तो न करें ताकि बच्चों के बीच गलत संदेश न जाए। बच्चों के सामने ऐसी हरकतें करते हैं, तो बहुत बुरा असर होता है। 

एक जगह एक बच्चा मेरे पास आया और बड़ी मायूसी के साथ बोला कि ‘महाराज एक कृपा करोगे?’ मैंने बोला क्या हो गया? बोला कि ‘मेरे मम्मी-पापा में दोस्ती करा दो, बहुत लड़ाई करते है, क्या करें?’ एक ७-८ साल का बच्चा ये सब कह रहा है कि वे आपस में बोलते तक नहीं हैं। ये क्या तमाशा है? अरे! पति-पत्नी एक दूसरे से लड़ने के लिए थोड़ी बनते हैं। एक दूसरे को सारी जिंदगी निभाने के लिए बनते हैं। तो एक कोशिश करनी चाहिए, बहुत अच्छे तरीके से ये होना चाहिए कि हमारा जीवन एक-दूसरे से लड़ने-मरने में न बीते, हमारा जीवन हमारे जीवन को व्यवस्थित करने में बीते। वो तरीका अपने जीवन में घटित होना चाहिए। ताकि आप अपने जीवन में सामंजस्य ला सकें। 

बच्चों का जहाँ तक सवाल है, बच्चे भी कभी-कभी दूसरों की लड़ाई को दूर करने में निमित्त बन जाते हैं। एक जगह सत्संग चल रहा था और उस सत्संग में एक भजन गाया गया-“कटु वचन मत बोल मनवा, कटु मत बोल, मुख में मिश्री घोल मनवा, मुख में मिश्री घोल।” ये बोल थे उस सत्संग में। एक दिन बच्चा भी गया। माँ-बाप भी जाते थे पर माँ-बाप में कई दिनों से आपस में बोलचाल बंद थी। दोनों सत्संग सुनकर आये। दोनों में आपस में कई दिनों से खींचा तानी थी। एक दूसरे से बोलें नहीं, काम कैसे चले? आप लोग तो जानते हैं, ये अनुभव आप लोगों का है, मेरा नहीं है। अब क्या हुआ कि उस बच्चे को वो बात याद आ गई है। दलान में बैठा था, एक कमरे में उसकी माँ थी और सामने वाले कमरे में उसके पिता थे। वो बोलने लगा- ‘कठिन वचन मत बोल मनवा, कठिन वचन मत बोल’, उसके पिता ने सुना और माँ की तरफ इशारा करके बोला कि ‘जा मम्मी को सुना।’ बेटा मम्मी की तरफ चला गया। ‘कठिन वचन मत बोल मनवा, कठिन वचन मत बोल’, माँ हँसी और धीरे से पिता की तरफ इशारा कर के कहा ‘जा पापा को सुना’। अब क्या था, इधर वो मम्मी की तरफ सुनाए तो वो कहे कि पापा की तरफ सुना और पापा की तरफ सुनाए तो कहें कि मम्मी को सुनाओ। बेटा एक-दो बार इधर से उधर डोला और जब देखा कि उधर से इधर और इधर से उधर किया जा रहा है, तो वह बीच में बैठ गया और बोला कि न मैं इधर और न उधर मैं बीच में बैठकर बोलूँगा। एक तरफ माँ को देखें और बोले कि कठिन वचन मत बोल मनवा तो उसके पाप हँसे और इधर पिता की देखे तो उसकी माँ हँसे। वो कुछ देर तक यही गीत गुनगुनाता रहा और दोनों एक दूसरे को देखकर के हँसे और उस हँसी के बाद उस बच्चे के मोह का अंदाज ये हुआ कि दोनों का मन साफ हो गया। और बोले कि ‘ठीक कहता है ये बालक कि कठिन वचन मत बोल मनवा, कठिन वचन मत बोल, माँ-बाप के बीच एक मौन चल रहा था वो मौन टूट गया दोनों के मध्य संवाद और सामंजस्य स्थापित हुआ।’ तो कई बार बच्चे भी निमित्त बन जाते हैं। बच्चों के सामने इस तरह का अप्रिय प्रसंग नहीं करना चाहिए। कई-कई बार माँ-बाप अपने बच्चे को एक दूसरे के against उकसाते हैं । ऐसा कार्य करके आप अपना तो गलत कर ही रहे हैं बच्चों का भविष्य भी अन्धकार में कर रहे हैं। इसलिए ऐसे परिणामों से अपने आप को बचाना चाहिए।

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