परिवारों में संस्कारों को बनाए रखने के लिए बुजुर्गों की क्या भूमिका होनी चाहिए?

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शंका

परिवारों में संस्कारों को बनाए रखने के लिए बुजुर्गों की क्या भूमिका होनी चाहिए?

समाधान

बहुत अच्छा सवाल किया। परिवार में संस्कारों को संस्थापित बनाए रखने के लिए बुजुर्गों की क्या भूमिका होनी चाहिए। मैं समझता हूँ बुजुर्ग अगर अपनी जिम्मेदारियों का ठीक ढंग से निर्वाह करें तब परिवारों में संस्कारों से भटकाव हो ही नहीं सकता। बुजुर्गों को चाहिए कि प्रारम्भ से ही अपने घर परिवार में एक आदर्श वातावरण बनाएँ, अपने परिवार की मर्यादाएँ सुनिश्चित करें, और परिवार के एक-एक सदस्य को यह बात इस बात का एहसास करा दें कि उनकी सीमाएँ क्या हैं? और खुद भी अपने जीवन में उतारें। अपने व्यक्तित्त्व को इतना गहरा बनाएँ कि परिवार का कोई भी सदस्य उनकी बात को उठाने की सोच भी न सके। अपने आप को प्रासंगिक बनाएँ और इतने व्यवस्थित तरीके से अपनी मर्यादाओं को सुनिश्चित करें की कोई भी उसका उल्लंघन करने की न सोच सके। यदि ऐसा व्यक्ति करता है, तो घर परिवार में कोई भी खराब नहीं हो सकता। बच्चों से, घर के अन्य सदस्यों से बातचीत करें, खुली करें, यह बता दें कि हमारे घर में क्या स्वीकार्य है और क्या स्वीकार्य नहीं है। घर के बड़े बुजुर्गों का प्रभाव संस्कारों के प्रति क्या होता है, और बच्चे उसे क्या स्थान देते हैं, मैं दो उदाहरण आप सब को देना चाहता हूँ। 

पहला उदाहरण एक परिवार बहुत संस्कारित परिवार था। और उनके परिवार का एक बेटा अपने मित्रों के आग्रह से नाइट शो पिक्चर देखने गया। अपने पिता से अनुमति लेकर के गया। लौट कर आया, रात ११:०० बजे पिता का दरवाजा खुलवाया। “पापा दरवाजा खोलो।” “क्या बात है?” “बड़ी जरूरी बात है”, “सुबह कर लेना”, “नहीं अभी खोलो।” पिता ने दरवाजा खोला तो देखा कि बेटा बदहवास हालत में। “बेटा क्या हो गया?” “पापा बहुत बुरा हो गया, बहुत बड़ी गलती हो गई”, “अरे क्या हुआ?”  “दोस्तों के साथ मैं पिक्चर के लिए गया था आपसे अनुमति लेकर के गया था। मेरे दोस्तों ने बाद में कैंटीन में जाकर के ड्रिंक लिया, मुझे प्रेशराइज करने लगे, बहुत प्रेशर दिया, मेरे पानी के गिलास में उन्हें दो बूँद बियर मिला दी, मैंने पी लिया। पिताजी मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई।” पिता ने कहा “ठीक है बेटा, तूने किया, गलत किया। पर यह बात तो सुबह भी बता सकता था।” बोला “पिताजी मैं बहुत अन्दर से टूट रहा हूँ, मुझे लगा कि मैं अपने दोस्तों के आगे अपने पिता का भरोसा तोड़ दिया। मेरे पिता ने मेरे ऊपर भरोसा करके मुझे भेजा था। वह भरोसा टूट गया, मेरा मन टूट रहा है, कि मैं अपने दोस्तों के आग्रह के पीछे अपने पिता के भरोसे को तोड़ दिया। आज दो बूँद पिया हूँ, कल पूरी जिंदगी उसे पी सकता हूँ। मुझे ऐसा नहीं करना।” पिता ने अपने गले लगा लिया और कहा “बेटा आज ऐसी गलती हो गई, दोबारा ऐसी गलती मत करना।” जिस घर के बुजुर्ग अपने बच्चों का ऐसा भरोसा जीत लेते हैं उस घर में कभी संस्कार नष्ट नहीं हो सकता है। यह भरोसे की बात है। 

दूसरा उदाहरण एक युवक मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था। पढ़ाई पूरी हो गई और उसने पोस्टग्रेजुएट भी कर लिया। एक लड़की से उसका उसकी दोस्ती थी। दोनों एक दूसरे को लाइक करते थे। लेकिन जब शादी की बात आई, लड़के ने साफ-साफ उस लड़की से कह दिया कि हमारी तुम्हारी दोस्ती दोस्ती तक ही सीमित है, क्योंकि मैं जिस परिवार में जन्म लिया हूँ, हमारे परिवार में विधर्म और अन्तर जाति विवाह की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसा मैं नहीं कर सकता, तुम कभी सपने में भी मत सोचना। लड़की को एक बार झटका लगा, वह सोचती थी कि यह मेरे लिए एक जीवन साथी के रूप में बनेगा। लेकिन जब लड़के ने कहा कि मैं अपने परिवार की परम्पराओं से बन्धा हूँ, तो उसको भी एक बार यह सोचने को बाध्य होना पड़ा, इतनी दृढ़ता बच्चों के भीतर जगा दो, तो समझना आपने भी अपनी भावी पीढ़ी को सुरक्षित कर लिया। 

हर घर के लोगों को यह चाहिए कि बच्चा जब से जन्म ले उसके भीतर इस तरह से संस्कार और विश्वास जमा दें कि वह एक कदम भी हिल न सके तभी आप भविष्य सुरक्षित रख संकेंगे।

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