व्यापार में अर्थ-नीति कैसी हो?

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शंका

धार्मिक दृष्टिकोण से किन बातों का ध्यान रखते हुए हम अच्छे व्यापार को चलाते हुए उसे और आगे बढ़ाएं?

समाधान

एक नीति वाक्यामृतं नाम का ग्रन्थ है, उसमें अर्थ नीति के अंतर्गत कुछ खास बातें बताई है, उनमें से तीन बातें मैं आप सबको ख़ासकर युवकों को जरूर बताना चाहता हूँ जो व्यापार के क्षेत्र में कदम रखने वालों के लिए बहुत ध्यान देने लायक है, अमल करने लायक है। उसमें लिखा है, ‘कभी overestimate (अधिक मूल्यांकन) बिज़नेस मत करना।’ आज सब बैंक और बाजार के भरोसे व्यापार करते हैं, और रातों की नींद गंवा देते हैं, भयंकर टेंशन के शिकार हो जाते हैं। जितना चादर उतना पाँव पसारने वाले सिद्धांत पर आपको चलना चाहिए। overestimate व्यापार अशांति का कारण है क्योंकि किसी भी तकनीकी कमी के कारण यदि आपके व्यापार में वृद्धि नहीं हुई तो ब्याज के भार में डूब जाओगे। 

दूसरी बात वहाँ लिखी है कि यदि लगातार नुकसान होने लगे तो transaction (लेनदेन) बंद कर दो, निवेश रोक दो, समझो कि ‘अभी मेरे अशुभ कर्म का चक्र चल रहा है, इस समय मैं ढलान पर हूँ, गड्ढे की ओर जा रहा हूँ।’ यदि इस गड्ढे को भरने की कोशिश करूंगा तो और गड्ढे में चले जाऊँगा। हाथ-पाँव बांध लो, निवेश रोक दो। लोग ऐसी स्थिति में उस नुकसान को कवर करने के लिए बड़ा गेम खेलते हैं और उसी गड्ढे में खुद को दफन कर लेते हैं, बड़े-बड़े व्यापारी इसलिए ही fail होते है| 

तीसरी बात, जो आदमी ब्याज चुकाने के लिए ब्याज पर रुपया मांगे, भूल करके उसको रुपया मत देना। जो ओवरएस्टिमेट काम कर रहा है, उससे अपना ट्रांजैक्शन बड़े हिसाब से करना। अगर तुमने उसको रकम दी तो मान करके चलना तुम्हारी रकम लौटने वाली नहीं है क्योंकि तुमने डूबते जहाज पर अपना द्रव्य रखा है, जो कभी भी नष्ट हो सकता है और उसे दो तो उसे खैरात मान करके दो, तभी संभल सकते हो।

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