शासकीय अधिकारी का समाज के प्रति क्या कर्त्तव्य होना चाहिए?

150 150 admin
शंका

आज अपने समाज में करीब- करीब 150 से ज़्यादा जैन आईएएस- आईपीएस है और आने वाले दो सालों में इतने और बढ़ जाएँगे। कोई मन्दिर- धर्मशाला के लिए किसी काम हेतु हम कोई आईपीएस के पास जाते हैं तो जो 6 महीना लगता है वह उनके पास जाने से हो सकता है कि 10 दिन में हो जाए। उन्होंने अपने को फेवर किया इससे उस ऑफिसर को कोई प्रॉब्लम आ जाएँ, तो हमारे जैन समाज का क्या कर्तव्य होना चाहिये, इसके बारे में थोड़ा बताइए?

समाधान

इस विषय के लिए मैं कहूँगा कि जो भी शासकीय अधिकारी है वो हमारे समाज के लिए कानून के दायरे से या विधान की सीमा का उल्लंघन करके कुछ करें, ऐसा तो मैं नहीं कहता लेकिन वैधानिक दायरे के अन्दर रह करके वह जितनी सुविधा उपलब्ध करा सके, जरूर कराना चाहिए। यह काम केवल जैन धर्म के लिए ही नहीं अपितु जैन धर्म और भारतीय धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए, समाज के कल्याण के लिए जो भी कर सके वह करना चाहिए। प्रशासन के अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने प्रशासनिक सेवा के दरमियान समाज की सेवा करें, संस्कृति की रक्षा करें और ऐसे अधिकारियों को जो धर्म और संस्कृति की रक्षा करते हैं उन्हें समाज का भी सपोर्ट मिलना चाहिए। संस्कृति की रक्षा में नीरद व्यक्तियों की कैसे समाज सुरक्षा करती है, मै एक घटना सुनाना चाहता हूँ। 1992 में मध्य प्रदेश के विदिशा शहर के जिला कलेक्टर से सुरेश जैन ने अपने कार्यकाल में वहाँ के टीले को खुदवा दिया जिसमें “विजय मन्दिर” पूरा एक वैष्णव मन्दिर निकला जिसे आज तक कोई अधिकारी नहीं कर पाया। उनने अपनी इच्छा शक्ति के बल पर वह कार्य किया। उसके बाद वहाँ का रामलीला मैदान विवादित था, उसे मुक्त कराकर के कमेटी को सुपुर्द करा दिया। उनके जीवन के यह दोनों कार्य बड़े श्रेष्ठ कार्य रहे। ये संयोग रहा कि अधिकारियों के साथ कई तरह के चक्कर होते हैं और एक व्यक्ति ने अपने व्यक्तिगत रंजिश के कारण उन्हें सस्पेंड करा दिया। उनके सस्पेंशन के बाद पूरा विदिशा जिला बंद रहा और सस्पेंशन की अवधि में उनका नागरिक अभिनंदन किया गया। यह जैनियों के द्वारा नहीं जनता के द्वारा किया। इसका ये परिणाम निकला कि वे थोड़े दिन में रिस्टेट हुए और अपनी शासकीय सेवा पूरी की। कोई भी अधिकारी यदि अपने प्राण लगाता है, तो समाज को उसके लिए भी अपना छत्ता तान कर रखना चाहिए ताकि उसे कभी कोई कठिनाई न हो और दूसरा अधिकारी अच्छे कार्य करने में किसी प्रकार का संकोच न करे।

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