परिवार में कैसा व्यवहार हो कि धर्म और अर्थ पुरुषार्थ को पूर्ण कर सकें?

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शंका

महाराज जी! मैं १९ साल से घर से बाहर हूँ, पहले पढ़ाई कर रहा था फिर विदेश चला गया नौकरी करने के लिए, इसी बीच में विवाह हो गया ६ साल पहले, अब भारत वापस आया हूँ उसमें एक प्रयोजन यह है माँ-बाप की सेवा करूँ तो माँ-बाप के साथ में रहना चाहता हूँ। घर में चार लोग हैं मम्मी-पापा, मैं और पत्नी! कई सम्बन्ध आपस में बन जाते हैं-बाप-बेटे के, माँ-बेटे के, सास-बहू के, पति-पत्नी के। तो हमारा आपस में किस प्रकार का व्यवहार होना चाहिए जिससे कि आपस में सामंजस्य रहे और एक दूसरे का सहयोग करते हुए हम धर्म-पुरुषार्थ, अर्थ-पुरुषार्थ को पूर्ण करें।

समाधान

परिवार में अनेक लोग रहते हैं और उस अनेक लोगों के बीच जब तक आपस में सामंजस्य नहीं हो तब तक जीवन का रस प्रकट नहीं होता। माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन यह परिवार के मुख्य अंग है। बच्चे भी उसमें शामिल हैं और देवरानी-जेठानी, ननंद-भोजाई सब इसमें शामिल है। अब इसमें हर व्यक्ति अपनी-अपनी भूमिका के अनुरूप चले तो सारा कार्य हो सकता है। अगर मैं बहुत विस्तार से कहूँ तो आज का पूरा सत्र आपके प्रश्न में समाहित हो जाएगा लेकिन मैं सार में कुछ बातें कहना चाहता हूँ जो परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। 

सबसे पहली बात कोऑपरेशन (cooperation) की भावना, एक दूसरे को कोऑपरेट करें। जब तक आप कोऑपरेट नहीं करोगे तब तक ठीक ढंग से चल नहीं पाओगे। 

नंबर दो कोआर्डिनेशन (coordination)एक दूसरे के बीच समन्वय होना चाहिए। 

नंबर तीन कम्युनिकेशन (communication), एक दूसरे के साथ संवाद जुड़ा रहना चाहिए। 

नंबर चार एक दूसरे के लिए कंट्रीब्यूशन (contribution) होना चाहिए। 

और नंबर पाँच कॉम्प्रोमाइज (compromise) के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जिसमें कोआर्डिनेशन हो, सहयोग हो, समन्वय हो, एक दूसरे के साथ सद्भाव हो, एक दूसरे को कंट्रीब्युट करें और कॉम्प्रोमाइज करने के लिए लोग तैयार हो तो परिवार में कभी गड़बड़ नहीं हो सकता। हम सब को एक दूसरे को कोऑपरेट करना चाहिए, कोओरडीनेट करना चाहिए, कॉम्प्रोमाइज करना चाहिए, कंट्रीब्यूशन अपना जितना बन सके उतना देकर के चले। सारा काम करना होगा सबको करना होगा, बड़े को भी करना पड़ेगा, छोटे को भी करना पड़ेगा। इन पाँचों बातों को केवल परिवार में ही नहीं पूरे समाज में भी फैलाया जा सकता है, पूरे विश्व में फैलाया जा सकता है। यदि लोग इन्हें आत्मसात करके चले तो कहीं किसी प्रकार की खटपट हो ही नहीं सकती।

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