विकलांग व्यक्ति के प्रति क्या भाव रखें?

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शंका

परिवार व समाज में ऐसे कई लोग हमसे मिलते हैं जो कि पोलियोग्रस्त, ऑटिज्म या फिर किसी भी शारीरिक या मानसिक दुर्बलता से पीड़ित हैं।  ऐसे लोगों के लिए हमारा क्या दायित्त्व होना चाहिए? ऐसे लोगों को हम कैसे मोटिवेट करें कि उनका जीवन वो खुशी-खुशी जी सकें?

समाधान

ऐसे लोगों से उपेक्षापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए, उनके प्रति विशेष प्रेम प्रकट करना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि ‘इनके जज्बात कितना अच्छे हैं, शरीर से विकलांग होने के बाद भी अपने जीवन के प्रति कितने उत्साहित हैं और कितने अच्छे तरीके से जीवन जी रहे हैं।’ उनसे एक प्रेरणा लो कि जीवन में अगर कोई कमी भी रह जाए तो अपने मन को कमजोर न बनने दें, अपने अन्दर के उत्साह को खंडित न होने दें, अपने हौसले को गड़बड़ाने न दें, उनकी तरह हम भी आगे बढ़ें। ‘आज विकलांगों ने एवरेस्ट भी फतह कर लिया है, हम तो पाँव वाले हैं, हम तो उनसे और आगे रहें। आज वो विकलांग या शारीरिक, मानसिक विकृतियों से जूझने के बाद भी अच्छा जीवन जी रहा है, तो हम तो और अच्छा जीवन जी सकते हैं।’ 

दूसरे तरीके से सोचो कि ‘आज इसके अन्दर यह विकलांगता आई है, तो निश्चित इनके पाप कर्म का उदय है। हम भी पाप करेंगे तो आज नहीं कल ऐसा परिणाम हमें भी भुगतना पड़ सकता है।’ इसलिए तय करो ‘जीवन में कभी किसी का उपहास न करें, जीवन में कभी किसी के साथ विश्वासघात न करें और जीवन में हम कभी किसी के अंगोंपांगों के साथ छेड़छाड़ न करें, कोई कुकृत्य न करें, कोई ऐसा पापपूर्ण कार्य व व्यवहार न करें जो हमारे जीवन के पतन का कारण बन जाए।’ ये बातें अगर आपके मन में आती है, तो बहुत कुछ चीजें सीख सकते हैं। 

अगर उनकी शारीरिक हीनता की वजह से मन टूट रहा है, तो आप उन्हें encourage (उत्साहित) करें, उन्हें प्रोत्साहित करें – ‘घबराओ नहीं! तन अगर लाचार है, तो क्या हुआ, मन लाचार नहीं होना चाहिए। अष्टावक्र का शरीर आठ जगह से वक्र था लेकिन अष्टावक्र जैसा ज्ञानी उस युग में उस धरती में कोई दूसरा नहीं था और वे जनक के दरबार में आदर पाते थे।’ इसलिए तन, तन है और तन से भी ज़्यादा मजबूत मन है इसलिए मन को भी हमें ध्यान में रखना चाहिए और खुद के मन को पवित्र बनाने के साथ-साथ सामने वाले के मन को मजबूत बनाने का प्रयास करें।

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