समाधिमरण के लिए किस क्रम में त्याग और ध्यान करना चाहिए?

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शंका

समाधिमरण के लिए किस क्रम में त्याग और ध्यान करना चाहिए?

समाधान

समाधि मरण की साधना के लिए व्यक्ति को सतत जागरूक होना चाहिए और ज्यों-ज्यों अवस्था क्षीण होती जाए, साधना को प्रखर से प्रखरतर बनाते रहना चाहिए। अपनी साधना को प्रखर बनायें।

अब आप जैसे व्यक्ति को केंद्रित करते हुए मैं समाधि की साधना की बात सार-संक्षेप में कह रहा हूँ, ६० वर्ष की उम्र पार कर लेने वाले व्यक्ति को चाहिए कि सबसे पहले अपने व्यापारिक दायित्त्व को सीमित करे।  दूसरे क्रम में अपने सम्पत्ति के स्वत्व को सुनिश्चित करे; सन्तान को जो कुछ भी देना है वह दे और स्वयं के जीवन के निर्वाह के लिए जितना आवश्यक है उतना अपने पास रखें, सब मत देना, गड़बड़ हो जाएगा। व्यापार-व्यवसाय सब उनके जिम्मे, अपने आप को यथासम्भव उससे अलिप्त रखें। अपना समय अब विशेष रूप से धर्म ध्यान में, स्वाध्याय में, सत्संग में और स्वास्थ्य चिन्तन में लगाएँ। 

खानपान को ठीक करना शुरू करें, सबसे पहले चरण में रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करें, दूसरे चरण में दिन में बार-बार खाने-पीने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखें, तीसरे चरण में शाम का भोजन बंद करें, अन्न लेना बंद करें, फल-दूध जैसी सामग्री पर रहने का अभ्यास करें, अगले चरण में बीच में जो पानी वगैरह लेते हो बंद करें एक बार भोजन एक बार फलाहार लेने का अभ्यास करें, उसके बाद फलाहार को धीरे-धीरे कम करके केवल पेय आहार पर निर्भर रहने का अभ्यास करें, उसके अगले चरण में एक बार भोजन और मात्र एक बार पानी का अभ्यास करें और उसके बाद हो सके तो मुनियों की तरह एक भुक्ति के अभ्यासी बने। इसी बीच अष्टमी-चतुर्दशी को शक्ति भर उपवास करें, रसों के त्याग का अभ्यास करें, ये आपके बाहर की सल्लेखना की तैयारी है। 

भीतर से अपने परिणामों में समता, सरलता, क्षमा भाव को बढ़ाएँ, अपनी कषायों को यथासम्भव शान्त करने का प्रयास करें, कषायों की शांति से ही जीवन का उद्धार होगा, इसलिए उसकी तैयारी करें और धीरे-धीरे जब तक शरीर काम करे, अपना काम करते रहें और जब शरीर शिथिल हो जाए, गुरु चरणों में उपस्थित होकर अपना निवेदन प्रस्तुत करें और उनके मार्गदर्शन के अनुरूप अपनी आगामी तैयारी करें।

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