मोक्ष के बाद प्राप्त होने वाला परम सुख क्या होता है?

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शंका

आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो जाता है और सिद्धालय में विराजमान हो जाती है। वहाँ उसे किस प्रकार के परमसुख मिलते हैं और परमसुख क्या होता है?

समाधान

हमें जो भी संसार का सुख मिलता है उससे हटकर के वहाँ सुख मिलता है। हमें जो सुख मिलता है वह कैसे मिलता है? हमें इन्द्रिय विषयों से अनुकूल सामग्री मिलती है तब सुख मिलता है, पंच इन्द्रियों के विषयों की प्राप्ति से सुख मिलता है। वहाँ वह सब कुछ नहीं, वहाँ उनके पास अतिशय रूप आत्मा से उत्पन्न विच्छिन्न विच्छेद रहित शाश्वत सुख की अनुभूति होती है। हम कुछ अच्छा देखते हैं, सुनते हैं, पढ़ते हैं, चखते हैं, छूते हैं तो हमको अच्छा लगता है, सुख की अनुभूति होती है; वहाँ यह सब कुछ नहीं है, वहाँ जो कुछ है, आत्मा से उत्पन्न है, मात्र जानना और देखना है। हमें कुछ अच्छा लगता है, कुछ बुरा लगता है, जो अच्छा लगता है वह हमें सुखकर लगता है जो बुरा लगता है वह दुखदाई हो जाता है और जो अच्छा लगता है वह स्थाई रूप से अच्छा नहीं लगता, वह अच्छा लगते-लगते खराब लगने लगता है, जो खराब लगता है वह कभी-कभी अच्छा लगने लगता है, तो हमारे सुख में अनेक प्रकार के ब्रेक हैं। उनके सुख में किसी भी प्रकार का ब्रेक नहीं है, सीधे आत्मा से उत्पन्न सुख होता है और बिना ब्रेक का सुख होता है। निर्बाध, अविछिन्न रुप से चला करता है। 

हमारा सुख सीमित है उनका सुख असीम है। वस्तुतः हमें भी जो सुख की अनुभूति होती है वह क्या है? ज्ञान से सुख की अनुभूति होती है। रसगुल्ला खाने से सुख मिलता है? रसगुल्ला खाने से सुख नहीं मिलता, रसगुल्ला को जीभ में रखो और जीभ में स्वाद न आए तो सुख मिलेगा, नहीं मिलेगा ना, रसगुल्ला खाने से तब सुख मिलेगा, जब रसगुल्ला जीभ में जाए और जीभ स्वाद ले, यह ज्ञान हो कि रसगुल्ला मीठा है, स्वादिष्ट है। रसगुल्ले का सुख तब मिला जब रसगुल्ले के स्वाद मिला। ये स्वाद किसने दिया? ये स्वाद ज्ञान ने दिया। हम लोगों का जो ज्ञान है वह बड़ा सीमित ज्ञान है, तो हमें सीमित स्वाद मिलता है। सिद्ध भगवान का ज्ञान असीम हो जाता है, तो उनको जो सुख मिलता है वह असीम मिलता है। वस्तुत: ज्ञान ही परम सुख है।

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