वासना काल क्या है?

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शंका

वासना काल क्या है?

समाधान

सबसे पहले वासना काल का अर्थ जाने! वासना काल किसे कहते हैं ?

उदया भावेऽपि संस्कार कालः वासनाकाल 

कर्म का उदय; क्रोध- मान- माया-लोभ, यह चार कषाए हैं, एक अंतर मुहूर्त तक उदय में रहते हैं और उसके बाद बदल जाते हैं। उदय तो आया, उसका अभाव होगया, लेकिन उसके बाद भी हमारे अंदर उसके संस्कार जमे रहे। इसको बोलते है वासनाकाल ! किसी से किसी बात को लेकर बकझक हुई, वह घटना घट गई। आप उस व्यक्ति से दूर हट गये, उस स्थान से दूर हट गये है पर अभी भी आप का पारा चढ़ा हुआ है और देखें तो आग लग जाए; यह वासनाकाल। यह सम्यक दृष्टि  के छः महीने से अधिक नहीं होते। वृती के ऐसी वासना काल पद्रह दिन से अधिक नहीं और साधु के अंतर मुहूर्त से अधिक नहीं, पानी की लकीर की भांति; यदि कदाचित कषाय का उद्वेग आ गया, साधु को भी आ सकता है ऐसी बात नहीं है; लेकिन आया और एकदम साफ; जैसे पानी मे लकीर खींची और वह मिटी, साधु के साथ ऐसा होता है, हो सकता है। तो उस वासना काल का तात्पर्य ये है। 

लेकिन कई बार इससे संबंधित यह भी प्रश्न आता है-“किसी व्यक्ति से बीस बरस पहले मेरी अनबन हुई, वह व्यक्ति मुझे अचानक दिखा, मुझे याद आ गया कि यह आदमी तो वही है जिसने मेरे साथ धोखा किया था, इसने मुझे cheat किया था,इसलिए मुझे नुकसान पहुंचाया था; यह बातें यदि याद आती है तो क्या यह भी वासना काल है?” नहीं! स्मरण होना अलग है और वासना होना अलग है ! उसे देखकर खून खौल रहा है, तुम्हारे अंदर द्वेष उमड़ रहा है तो समझना अभी वासना काल में जी रहे हो । यदि केवल स्मृति आती है कि-“आदमी ऐसा है, हमे इससे दूरी रखनी चाहिए।” ये केवल स्मृति है। आदमी की पहचान भी ऐसे ही होती है, तो किसी व्यक्ति का व्यवहार हमें अपने हित के अनुकूल नहीं दिखता और याद आता है कि इससे मुझे सतर्क रहना,यह बात अलग है। लेकिन “आज मजा चखाना है” , यह बात आ गई तो कषाय है।

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