Jainism की philosophy में यह कहा जाता है कि ‘पुण्य मिलेगा।’ अक्सर युवाओं के मन में यह शंका होती है कि पुण्य कब मिलेगा? इसे कब महसूस कर पाएँगे और इससे अपने आप को किस प्रकार से अभिभूत कर पाएँगे, यह कैसे होगा? जो युवा अवस्था के बालक हैं, कॉलेज जा रहे हैं, दुनिया की चकाचौंध देखते हैं और उनके प्रति आकर्षित होते हैं। हम उन्हें जैन धर्म और जैन philosophy को अपनी दिनचर्या में लाने के लिए कैसे प्रेरित करें।
एक बार मैं सम्मेद शिखरजी में था, दिल्ली का एक परिवार आया। उस परिवार के युवक के प्रति इशारा करते हुए मुझसे कहा गया कि ‘महाराज जी इससे कहिए कि यह धर्म करे।’ मैंने उसकी तरफ देखा तो उस युवक ने छूटते ही कहा कि ‘महाराज धर्म क्यों करें? माँ कहती है, पापा कहते हैं कि धर्म करो पुण्य मिलेगा, पुण्य दिखता तो है नहीं, हम क्यों करें धर्म?’ मैंने कहा ‘पुण्य करने के लिए धर्म करने की बात ही गलत है। किसने कहा कि पुण्य करने के लिए धर्म करना है, पुण्य के लिए धर्म करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।’ ‘तो फिर धर्म क्यों करें, पैसे की आवश्यकता है, पद की आवश्यकता है, प्रतिष्ठा की उपयोगिता है, धर्म की कोई उपयोगिता ही नहीं है।’ मैंने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारी बात से बिल्कुल सहमत हो जाऊँगा पर मेरे दो प्रश्नों का उत्तर दो। तुम अपने नेगेटिव इमोशंस को रोकना चाहते हो?” ‘हाँ महाराज! चाहता हूँ।’ “व्यक्तित्त्व के विकास में अपने नेगेटिव इमोशंस को रोकना अनिवार्य मानते हो?” बोला ‘हाँ! मानता हूँ।’ हमने कहा, “अपनी बैड हैबिट से मुक्ति पाना चाहते हो?” ‘हाँ, चाहता हूँ।’ हमने कहा “यही तो धर्म है, धर्म करने का प्रत्यक्ष लाभ क्या होगा? तुम्हारे नेगेटिव इमोशंस खत्म होंगे, नकारात्मक भावनायें खत्म होगी, तुम्हारी नकारात्मक वृत्ति बदलेगी और तुम्हारी बुरी प्रवृत्तियाँ बदलेगी।” जिसके माध्यम से वृत्ति और प्रवृत्ति में परिवर्तन हो, उसका नाम है धर्म, इसलिए धर्म पुण्य पाने के लिए मत करो, जीवन को पूर्ण बनाने के लिए करो।
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