धर्म-अधर्म द्रव्य की वर्तमान विज्ञान में क्या उपयोगिता है?

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शंका

जैन आगम के अनुसार धर्म और अधर्म द्रव्य आकाश लोक में चलने में, ठहरने में सहायक होते हैं। लेकिन अन्तरिक्ष में जो यात्री जाते हैं बहुत भारी अन्तरिक्ष सूट पहन कर जाते हैं। अगर वो न हों तो वो अन्तरिक्ष में चलते फिरते रहेंगे, हमेशा के लिए, विलीन हो जाऐंगे अन्तरिक्ष में। क्या वहाँ धर्म अधर्म द्रव्य नहीं है जो उन्हें ठहरने में सहायक हो?

समाधान

पहली बात तो मैं ये पूछता हूँ कि अन्तरिक्ष लोक में है या लोक से बाहर है? जब अन्तरिक्ष लोक में है, तो धर्म और अधर्म के विषय में शंका करने की बात ही नहीं है। 

रहा सवाल कि वहाँ का जो एरिया है वो ग्रेविटी फोर्स से बाहर है। उस ग्रेविटी फोर्स से बाहर होने के कारण वहाँ अलग तरह की व्यवस्थाएँ हैं, लेकिन फिर भी वो जाकर ठहर रहे हैं ना? स्पेस पर जितने भी आज के उपग्रह गये हैं वो टिके हुए हैं या नहीं? किसके base (सहारे) पर टिके हैं? यदि धर्म और अधर्म नहीं होता तो कैसे टिकते? जो scientist (वैज्ञानिक) जाते हैं वो वहाँ टिक रहे हैं न, किस के बल पर टिक रहे हैं? जहाँ motion है (गति) वहाँ rest (स्थिरता) भी है। इसलिए जहाँ धर्म द्रव्य होगा, वहाँ अधर्म द्रव्य भी होगा इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। 

अगर वो भारी सूट न पहने हों तो विलीन हो जायेंगे अन्तरिक्ष में! वो वहाँ की ऊर्जा का प्रभाव है। ‘विलीन हो जाएँगे’ से तात्पर्य ये नहीं है कि ‘विनष्ट हो जायेंगे’। मतलब है, उनका स्वरूप बदल जायेगा। किसी भी चीज को आप गला देते हैं,  जैसे कपूर है, जलायेंगे तो कपूर विलीन हो गया; उसके बाद ‘मूव’ हुआ और मूव होने के बाद कहीं न कहीं ‘रेस्ट’ तो होगा ही? मूलतः किसी चीज का विनाश किसी लोक में नहीं हो सकता वहाँ जितने सेटेलाइट्स आदि हैं, वे सब किसके सहारे टिके हुए हैं? वे सब धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य के सहारे टिके हुए है। धर्म द्रव्य उनके मूवमेंट में सहायक बना और अधर्म द्रव्य ने उन्हें टिका रखा है।

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