जैन धर्म में आरती की क्या उपयोगिता है?

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शंका

जैन धर्म में आरती की क्या उपयोगिता है?

समाधान

आरती शब्द बहुत प्राचीन है। आरती के लिये प्राचीन शास्त्रों में दो शब्द मिलते हैं- निराजन और आरतिका। यह पूजा भक्ति का एक अंग है। ‘आरती’ शब्द बना ‘आ’, ‘रती’ से। ‘आ’ यानि सब प्रकार से, ‘रती’ यानि प्रेम। भगवान के प्रति लगाव और जुड़ाव का प्रकट होना आरती कहलाता है। आरती एक भक्ति का अंग है। आरती करें पर विचार और विवेक के साथ करें। इतना घी का प्रयोग ना करें की उसमें जीव हिंसा की सम्भावना हो। अपने दीप में उतना ही घी रखें की आरती होते-होते वह समाप्त हो जाए।

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