भूत प्रेत की दुनिया का सच क्या है?

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शंका

कहते हैं “भूत प्रेत की भी दुनिया होती है” और उन भूत-प्रेत से हम लोग भयभीत भी रहते हैं। कभी-कभी घर के किसी आदमी पर भूत का अटैक भी आता है। फिर हम लोग मौलवियों के पास चले जाते हैं और उसको छुड़ाने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी लोग राजस्थान में मेहंदीपुर बालाजी जाते हैं और उस भूत प्रेत से मुक्ति का उपाय करते हैं।गुरुदेव, यह भूत प्रेत की क्या सच्चाई है? अगर ऐसा है, तो इससे मुक्ति का क्या उपाय है?

समाधान

देखिये, अगर आप मुझसे पूछो तो मैं कहूँगा कि मन का भूत ही सबसे बड़ा भूत है। जिसके मन में भूत है, उसी के पीछे भूत प्रेत है। और जिसका मन पूत है, वहाँ न भूत है न प्रेत है। मेरे सम्पर्क में ऐसे बहुत सारे लोग आए। पर मुझे लगता है कि जिन्हें भी भूत प्रेत से जोड़ा जाता है, वो सब मनोविकृति के परिणाम हैं। इसे लोग समझ नहीं पाते और अन्धविश्वासों के शिकार होकर तरह-तरह के ठठ कर्मों में पड़ जाते हैं। मैं २-३ अनुभव आप सबके बीच रखना चाहूँगा। 

मैं एक स्थान पर था, वहाँ एक युवक मुझसे काफी जुड़ा था। कुछ दिनों से वह परेशान था। पूछने पर उसने बताया कि “महाराज जी, आजकल सो नहीं पाता हूँ। छोटे भाई की जो पत्नी है, वो रात भर चिल्लाती है। उसको भूत लग गया है। इसके कारण हम लोग सो नहीं पाते हैं। यही वजह है कि आपके पास भी नहीं आ पाता।” हमने कहा- ठीक है भाई, एक बार लेकर आओ। जब मेरे पास लेकर आया, मैंने उसे देखा, बातचीत की, मुझे समझ में आ गया कि मामला कुछ और है। मैंने उन्हें समझाया कि “भैया, कुछ मत करो। किसी साइकेट्रिक को दिखाओ और परिवार की शांति के लिए भगवान के चरणों में जाकर एक शांति विधान कर लो, सब ठीक होगा, इलाज कराओगे सब ठीक हो जाएगा।” परिवार के लोगों को सन्तोष नहीं हुआ। उन्हें लगा कि महाराज झाड़-फूंक में विश्वास नहीं रखते इसीलिए टालने के लिए ऐसा कह दिया। अब मुझे उन्हें रास्ता दिखाना था। जो युवक मुझसे जुड़ा हुआ था, मैंने उससे कहा कि एक काम करो, तुम लोग ऐसे नहीं सुधरोगे, तुमको एक नाटक करना है। उसे एक रास्ता बताया और रात के ११:०० बजे उसने भी आय माय बकना शुरु कर दिया। घर के लोगों को लगा कि इस पर भी भूत चढ़ गया, इसको भी भूत ने पकड़ लिया। अब उसे भी उसी ओझा के पास ले गए जिससे उनकी बहू का झाड़-फूंक चल रहा था। जब ओझा के पास पहुंचे, तो ओझा ने चमेटा लेकर अपना काम करना शुरू किया। वह युवक अच्छा मजबूत शरीर वाला था, उसने चमेटा लेकर उल्टा उस ओझा का ही काम कर दिया। वह बोला, यह सब फालतू की बातें है, मेरे ऊपर कुछ नहीं है, मैं तो एक्टिंग कर रहा था। तुम जैसे मुझे बुद्धू बना रहे हो वैसे इसको भी बुद्धू बना रहे हो। हम सब वापस चलते हैं। परिवार के लोगों को भी समझ में आया। फिर वह बहू का वहाँ के एक मनोचिकित्सक से इलाज करवाया। १५ दिन में वह ठीक हो गई। उसकी जो असामान्य स्थिति थी, उसकी वजह मुझे उसकी हिस्ट्री में पता चली। वह शादी में अपने मायके गई थी। भाई-भाभी से पटती नहीं थी। गर्मी का दिन था। ३ दिन खाया पिया नहीं, सोई नहीं थी। गर्मी चढ़ गई दिमाग में। सो हो गया काम और भूत लग गए। 

एक दूसरा किस्सा इनके गाँव पिंडरई का है। वहाँ हमारे सानिध्य में पंचकल्याणक हुआ। बहुत पुरानी बात बता रहा हूँ १९९६ की। तो एक युवक था, उसको कमेटी से कुछ पैसा लेना था। पेमेंट नहीं हुआ। उसने गुस्से में जाकर यज्ञ स्थल से चीप उखाड़कर अपने जीप ट्रैक्टर में ले गया। और उसी रात से अबनॉर्मल हो गया। एकदम अबनॉर्मल हो गया। अब लोगों को लगा कि यज्ञ स्थल की पवित्र वस्तु के साथ गड़बड़ किया इसीलिए इसको तो भूत लग गए। मैं उस समय उनके गाँव से लगभग सवा १०० किलोमीटर दूर था, जबलपुर के पास। यह लोग गाड़ी भरकर के मेरे पास आए। अब वह लड़का मेरे पास आया, आकर बात किया, बोला “हमें आदिनाथ सिद्ध हो गए। हमारी direct बातें होती हैं।” एकदम अबनॉर्मल बातें, ऊटपटांग। जब मैंने पूरा वाकया सुना तो मैंने सबसे यही कहा कि भैया कोई भूत वूत नहीं है। पहला काम तो यह करो कि पवित्र स्थल से जो सामग्री उठाई है उसको जहाँ के तहाँ लगा मन्दिर में जाकर भगवान के चरणों में क्षमा माँगो, शांति विधान करो और इसका इलाज कराओ। जबलपुर के ही एक मनोचिकित्सक से उसका इलाज हुआ। १५ दिन में वह युवक ठीक हो गया। सही जगह आया तो सब ठीक हो गया, वरना पता नहीं कब तक झाड़-फूंक चलता रहता। 

तो ऐसे किस्से बहुत हैं। दिखता है, लगता है कि नहीं बिल्कुल सब सच जैसा है, पर मुझे कम विश्वास होता है। मैं इन सब पर बिल्कुल विश्वास नहीं करता। आप लोगों से भी यही कहूँगा इन पर भरोसा मत करो। अपने आपको मजबूत बनाके रखो। शास्त्रों की दृष्टि से मैं मानता हूँँ कि भूत प्रेत होते हैं पर वो इतने व्यस्त हैं कि आपके पास आने की सुविधा अभी उनको नहीं है। उनकी दुनिया अलग है। वे देव योनि में रहने वाले है। वह आपके साथ समय क्यों बिताएँगे? यह हमारे मन का एक बृह्मपूर्ण अन्धविश्वास है। चाहे पितर की बात हों या अन्य तरह से बात हों। जो दुर्बल मन से ग्रसित होते हैं, वह ऐसी बातों को पकड़कर के बैठ जाते हैं। और फिर बाबाओं की दुनिया भी बहुत बड़ी है। लोग उनके व्यामोह में पड़ते हैं तो मामला उलझ जाता है। मुझे तो तब ताज्जुब होता है जब आज के पढ़े लिखे लोग भी ऐसे अन्धविश्वासों के शिकार होते है। हमें बहुत सजगता से चलना चाहिए। प्रायः ये बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) के शिकार लोग ही ज़्यादा होते हैं। इसलिए कोई भी घटना घटे उसको भूत प्रेत से जोड़ करके चलना मेरी नजर में पूरी तरह सही नहीं है।

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