श्रीकृष्ण का जैन आगम की दृष्टि में क्या महत्त्व है?

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शंका

श्री कृष्ण भगवान नेमिनाथ भगवान के चचेरे भाई थे, तो जैन धर्म की दृष्टि से जन्माष्टमी का क्या महत्त्व है और हमको उसको कैसे मनाना चाहिए?

समाधान

श्री कृष्ण नौवें नारायण थे और नारायण शलाका पुरुष में आते हैं और वो नेमिनाथ भगवान के चचेरे भाई भी थे। नारायण, प्रति नारायण, बलभद्र आदि शलाका पुरुष होते हैं। वे सब निकट मोक्ष गामी भव्य जीव होते हैं। हमारे आगम के अनुसार श्री कृष्ण भी भावी तीर्थंकर हैं। आगामी चौबीसी में १६ तीर्थंकर होने वाले हैं। इसलिए श्री कृष्ण का महान स्थान तो हमारे धर्म में हैं लेकिन जैन धर्म के अनुसार हम वीतरागता को पूजते है। इस भव में श्रीकृष्ण ने वीतराग रूप नहीं पाया। अभी नारायण हुए, जब वे तीर्थंकरत्व को प्राप्त करेंगे तब हम उनकी पूजा अर्चना करेंगे। तो उसे उसी सन्दर्भ में देखकर करके चलना चाहिए। एक नारायण होने के नाते उनके जीवन और आदर्श की चर्चा करना, उनके गुणों की चर्चा करना, उनके कौशल और पराक्रम की चर्चा करके उनके आदर्शों से अपने जीवन में एक अच्छी प्रेरणा पाना, कोई बुरी बात नहीं है।

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