मन्दिर में दिए दान का फल क्या होता है?

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शंका

जैन धर्म में चार तरह के दान बताये गये हैं। जो मन्दिर में दान देते हैं वो कौन से दान में आता है और इससे कौन सा कर्म कटता है?

समाधान

चार प्रकार के दान हैं- आहार दान, अभय दान, औषधि दान, शास्त्र दान या उपकरण दान

मन्दिर में हम जो दान देते हैं वो एक प्रकार से धर्म प्रभावना का निमित्त है, वो हमारे जिन शासन की महिमा को बढ़ाता है, वो पारमार्थिक दान के अन्तर्गत आता है। इसमें अगर देखा जाए तो एक प्रकार से चारों प्रकार का दान समाहित हो जाता है। जैसे आपने मन्दिर में दान दिया, उस दान से लोगों को ज्ञान मिला, मन्दिर में भगवान के दर्शन को प्राप्त किया, उसके जीवन के कल्याण का मार्ग उसे खुला तो उसे ज्ञान मिला यानि आपने ज्ञान दान दे दिया। मन्दिर में आपने दान किया तो उस दान के निमित्त से अनेक जीवों के अन्दर अहिंसा के भाव जागे, आपने 

अभय दान दे दिया। मन्दिर में आपने दान दिया तो वहाँ साधु-सन्तो के ठहरने का स्थान मिल गया तो आपके द्वारा आवास दान हो गया। मन्दिर में आपने दान दिया तो मन्दिर के अनुसांगिक इकाईयाँ उसके साथ जुड़ गई, साधु- सन्त, त्यागी व्रती आदि जुड़ गये तो आहार दान भी हो गया; तो सारा दान उसमें समाहित है, तो ये पारमार्थिक दान है। आम गृहस्थों को अपने जीवन को कृतार्थ करने के लिए दान के सात स्थान बताएँ हैं। 

जिनबिम्ब, जिनागार, जिनयात्रा: प्रतिष्ठिकम्  

दान पूजा सु सिद्धांत: लेखनम् सप्त क्षेत्रियो:।। 

अपने द्वारा अर्जित धन का इन सात स्थानों में प्रयोग करें, क्यों हम दान देते हैं स्व-पर के उपकार के लिए, जिससे लोगों का जीवनोंद्धार हो ऐसा कर्म करना चाहिए दान के लिए तो जिन बिम्ब की स्थापना, जिन मन्दिर का स्थापना, जिन यात्रा – तीर्थयात्रा, प्रतिष्ठा- ये सब धर्म की प्रभावना के विशेष निमित्त हैं, लोगों के सम्यक् दर्शन के कारण हैं। इसी प्रकार दान – पात्र दान, चतुर्विद संघ को दान और दीन दुखी जीवों के कल्याण के लिए दान, मानवता की रक्षा के लिए दान, पूजा – बड़े-बड़े पूजा, यज्ञ अनुष्ठान जो लोक मंगल की भावना से और धर्म की प्रभावना के उद्देश्य से किये जाते हैं और शास्त्र लेखनं – शास्त्र के प्रकाशन में, ये सात स्थान ऐसे हैं जहाँ अपने द्रव्य को लगाने से जीवन कृतार्थ होता है।

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