पुद्गल वर्गणाओं की हमारे जीवन में क्या भूमिका है?

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शंका

क्षेत्र का प्रभाव हमारे भावों पर, विचारों पर पड़ता है। वहाँ पर देव शास्त्र गुरु का हमें सानिध्य मिलता है लेकिन उसके साथ वहाँ की पुद्गल वर्गणाओं का भी महत्त्व बताया गया है। पुद्गल वर्गणा के समय जो भाव बन्ध के लिए तैयार हुए थे क्या वे उदय के समय भी उस जीव को देकर वर्गणा रूप हो जाते हैं?

समाधान

कर्म का उदय द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार होता है। अनुकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव होने पर कर्म अनुकूल होते हैं और प्रतिकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव होने पर कर्म प्रतिकूल होते हैं। ये पुद्गल वर्गणायें हमारे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अनुकूलता और प्रतिकूलता को प्रकट करते हैं इसलिए जहाँ जैसा कारण होता है, वैसा हमारा मन बन जाता है। वहाँ की वर्गणायें निमित्त बनी और वर्गणाओं की वजह से हमारे कर्मों में परिवर्तन आ गया। वर्गणा पौदगलिक है और एक प्रकार का रसायन है। उस रसायन ने हमारे शरीर के रसायनों को प्रभावित किया, शरीर के रसायन से हमारे कर्मों के रसायन प्रभावित हुए और उससे हमारे भाव बदल गये। कषाय तो एक भावात्मक परिणति हो गई जो कषाय के कर्म द्वारा उत्पन्न हुई। कषाय का कर्म पौदगलिक है जो वर्गणा से वर्गणा प्रभावित हुई और कार्य हो गया।

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