मनुष्य के जीवन के उत्थान में मन का क्या प्रभाव है?

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शंका

मन के जीते जीत है, मन के हारे हार! ऐसा क्यों? एक जीव तपस्या से ऊपर उठ जाता है और एक जीव मिथ्यात्त्व से निगोदिया ही बन जाता है। ऐसा क्यों होता है?

समाधान

इसमें ही तो आपकी बात का उत्तर है। जिसका मन strong होता वह शिखर पर चले जाता है, जिसका मन दुर्बल होता वो रसातल में पहुँच जाता है। मन के जीते जीत है, मन के हारे हार! सारा खेल मन के ऊपर ही है। हमारे नीतिकारों ने बहुत पुराने समय में ये बात लिखी कि

“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।

बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥”

विषयासक्त मन बन्धन का कारण है और निर्विषय मन, विषयातीत मन, मुक्ति का कारण है। सच्चे अर्थों में मन ही मनुष्य के बन्ध और मोक्ष का कारण है। ये मन है, मन को यदि हमने मजबूत रखा तो जीवन आगे बढ़ेगा। वस्तुतः हमारे जीवन का उत्थान या पतन मन के ऊपर ही निर्भर करता है। 

एक बार की बात है, एक जगह मेला लगा था, वहाँ गुब्बारे बेचने वाला गुब्बारे बेच रहा था। उन गुब्बारों में अनेक प्रकार के गुब्बारे थे, लाल, पीले, नीले और काले रंग के भी गुब्बारे थे। एक छोटा सा बच्चा गुब्बारे बेचने वाले को देख रहा था। बच्चे ने उससे पूछा कि ‘यह जितने भी गुब्बारे हैं, सब आसमान में उड़ेंगे?’ ‘हाँ उड़ेंगे।’ ‘सभी गुब्बारे आसमान में उड़ते हैं?’ ‘हाँ, सभी गुब्बारे आसमान में उड़ेंगे।’ ‘यह काले रंग के गुब्बारे भी उतनी ऊँचाई पर उड़ते हैं?’ ‘हाँ, उड़ेंगे।’ वो बच्चा इसलिए पूछ रहा था क्योंकि उसका रंग कुछ काला था, वह बदसूरत था और उसने देखा कि लाल, पीले, नीले, सब गुब्बारों की तरह काला गुब्बारा भी उड़ता है, उड़ सकता है। ‘अच्छा काला गुब्बारा भी उड़ सकता है?’ उस गुब्बारे वाले ने कहा कि ‘भैया गुब्बारे की उड़ान में गुब्बारे का रंग नहीं भीतर भरी गैस की तरंग कारण होती है। गुब्बारे अपने रंग के कारण नहीं उड़ते, अपने भीतर भरी हुई गैस के कारण उड़ते हैं। जिस गुब्बारे में गैस भर दी जाएगी वह गुब्बारा आसमान तक पहुँच जाएगा।’ बस मैं भी आपसे यही कहता हूँ मनुष्य के जीवन के उत्थान में उसका यह बाहरी रूप कारण नहीं होता, भीतरी विचार हैं जो उसे ऊँचाई तक पहुँचा सकते हैं, वह कारण बनता है। अपने विचार, अपने भाव को ठीक रखो। विचार और भाव तभी ठीक हो सकते हैं जब मनुष्य का मन परिष्कृत हो।

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