बच्चों के लिए देव-दर्शन की सही विधि क्या है?

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शंका

देव दर्शन की सही विधि क्या है?

समाधान

देव दर्शन के लिए जब आप मन्दिर में जाते हैं तो कैसे जाएँ? दर्शन का मतलब है- भगवान से मिलने जाना, भगवान से भेंट करना। दर्शन करने जा रहे हैं यानि कि भगवान से मिलने जा रहे हैं। भगवान कौन हैं- तीन लोक के नाथ। तीन लोक के नाथ से मिलने जाएंगे तो कैसे जाएंगे? आप किसी अधिकारी से मिलने जाते हो तो कैसे जाते हो? क्या धड़ल्ले से जाकर उसके केबिन में घुस जाते हो? यदि आपको अपने स्कूल में प्रिंसिपल के ऑफिस में जाना हो तो आप क्या करते हो? ‘पहले mentally prepare होते हैं, भाव दशा बनाते हैं; सोचते हैं क्या बोलना है, कैसे बोलना है और कितना बोलना है, जिससे मेरा काम बन जाये।’ आप एक साधारण अधिकारी से मिलने के लिए इतनी सावधानी रखते हो क्योंकि आपकी नज़र में वह एक उच्चाधिकारी है। उससे बात करने के लिए हमें बहुत सावधानी की ज़रूरत है, हमें अन्दर से awareness (जागरूकता) आवश्यक है। जब एक साधारण अधिकारी से मिलने जाते हैं तब आप इतनी सावधानी रखते हैं, तीन लोक के नाथ, सर्वोच्च अधिकारी भगवान से मिलने जा रहे हो ऐसे ही जाओगे तो कुछ मिलेगा? बोलो, नहीं मिलेगा ना? तो कैसे जाएँ? घर से मन्दिर के लिए निकलो तो ये सोच कर के निकलो कि ‘मैं त्रिलोकी नाथ के दर्शन करने के लिए जा रहा हूँ। तीन लोक के नाथ जिनसे बड़ा इस धरती पर कोई नहीं। जिनके चरणों में सुरेन्द्र, नागेन्द्र, नरेंद्र और मृगेन्द्र सब नतमस्तक होते हैं उनसे मिलने जा रहा हूँ। आज धन्य हूँ मैं भगवान से भेंट करने जा रहा हूँ।

मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ कि एक अवसर मिले कि आपको आज किसी बड़े सेलिब्रिटी से मिलना है, तो आपके मन में क्या प्रतिक्रिया होगी? KBC की हॉट सीट पर बैठने का मौका मिल रहा हो तो क्या प्रतिक्रिया होगी? आप फूले नहीं समाओगे, ‘ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।’ क्योंकि आप एक मेगास्टार व्यक्ति से मिलने जा रहे हो; और त्रिलोकीनाथ कौन हैं? उनसे बड़ा कोई नहीं है। तो उनसे मिलने जाते समय तुम्हारे अन्दर खुशी होती है या नहीं? कैसी खुशी होती है, ईमानदारी से बोलना? ‘महाराज! मम्मी डाँटती हैं कि मन्दिर जाओ तो चले जाते हैं। सुबह-सुबह ठंडी रहती है, मम्मी कहती हैं तो मन मार कर जाते हैं।’ यदि भगवान के दर्शन के लिए जाएँ तो मन मार कर मन्दिर न जाएँ। 

दूसरी बात, मन में भाव हो कि मैं त्रिलोकी नाथ के दर्शन करने जा रहा हूँ, आज मैं धन्य हूँ। जब आप मन्दिर के दरवाजे पर पहुँचें तो जूते व चप्पल उतारें; अच्छा तो यही है कि जूते व चप्पल लेकर ही मत जाओ, ये एक झमेला होता है और ले जाओ तो ऐसे लेकर जाओ कि यदि कोई ले जाए तो चिन्ता नहीं हो और यदि अच्छे भी ले जाओ तो उसकी चिन्ता मत करो। जूते के साथ अपने मन का परिग्रह वहीं छोड़ दो और जूते से कहो कि हे जूता देव! जब तक भगवान के दर्शन न कर लूँ तब तक सारा परिग्रह तुम्हारे चरणों में है। यदि ये विकल्प लेकर जाओगे तो भगवान के सामने जूते का भाव आयेगा क्या? भगवान का ध्यान करेंगे तो भगवान मिलेंगे और जूते का ध्यान करने पर…….? तो क्या करना है जूते चप्पल उतार दो। पाँव धोओ और पाँव धोते समय मन में ये लाओ कि ‘मेरे अन्दर की जितनी negativity (नकारात्मकता) हैं वह धुल रही हैं। 

फिर मन्दिर के द्वार पर तीन बार निश्चय ही “निःसही-निःसही-निःसही” उच्चारण करें। हम लोगों को कहा जाता है कि ‘कोई देवी-देवता हो तो साइड दे दें।’ आजकल देवी-देवता बहुत बिजी हो गये हैं, इस लोक में आते हों, ऐसा मुझे बहुत कम दिखता है। लेकिन इसका आध्यात्मिक अर्थ मुझे दिखता है, वह है – मेरे मन की, मेरे वचन की और मेरे शरीर की नेगेटिविटी खत्म हो जाए, निकल जायें, निकल जायें, निकल जाएं……..। इसके बाद आप मन्दिर में प्रवेश करें और घंटा बजायें। घंटे का नाद करें, घंटे की ध्वनि आपके सिर पर गिरनी चाहिए। इससे हमारे मस्तिष्क में बहुत ज्यादा अल्फा तरंगे उत्पन्न होती हैं। 

घन्टा एक अलग प्रकार का आनन्द और स्फूर्ति की अनुभूति देता है; पर तब जब घंटा बजाते समय आप घंटे के नीचे रहें; नहीं तो जो ध्वनि की तरंगें vibration (कम्पन) के साथ आप पर पड़नी चाहिए, वह नहीं पड़ पाती हैं। घंटा बजाएँ, ध्वनि का नाद हो, आप उससे अभिभूत हों। घंटा बजाने का मतलब मन्दिर में हल्ला करने का नहीं है, भगवान को जगाने का नहीं है, अपने मन को जगाना है; सावधान हो जाएं और वहीं अपने दोनों हाथ जोड़ें और बोलें “ऊँ जय जय जय जय जय…….. नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु……….।” फिर णमोकार मन्त्र- ‘णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं’ से ‘चत्तारि शरणम् पव्वजामी…’ तक बोलो और धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते भगवान के समक्ष पहुँचो। हाथ के पुंज को भगवान की वेदी पर रखो और गवासन से झुककर प्रणाम करो। 

गवासन से झुकाकर प्रणाम करने का मतलब जानते हो? जैसे गाय बैठती है वैसे अपने बायें पैर को नीचे दबाकर, यह पंचांग नमस्कार है; और कमर भी झुक जाए तो ये अष्टांग नमस्कार है। भगवान को खड़े-खड़े प्रणाम नहीं करना। जो भगवान के सामने झुक नहीं सकता है, वह जिन्दगी में कभी जमीन पर बैठ नहीं सकेगा। इसलिए यदि तुम्हारी कमर ठीक है और तुम्हारे घुटने ठीक हैं तो गुरु और भगवान के सामने बैठो और जमीन से जुड़े रहो; मजबूरी हो वह बात अलग है। प्रारंभ से ऐसा करते रहोगे तो अभ्यास बना रहेगा। 

फिर उठ कर खड़े हों और एक स्तुति पढ़ें ‘प्रभु पतित पावन’ की या ‘दर्शन पाठ’ की पढ़ लें जो स्तुति आपसे बनती हो वह पढ़ें और उस स्तुति के पढ़ने के उपरान्त नौ बार णमोकार मन्त्र पढ़ें। फिर एक बार प्रणाम करें, फिर तीन यदि वहाँ व्यवस्था अनुकूल है, तो तीन प्रदक्षिणा देकर भगवान को पुनः तीसरी बार धोक दें और बाहर निकलते समय इस तरीके से निकलें कि आपकी पीठ सीधे भगवान की ओर न पडे़। 

आपके पास समय हो तो और वेदियों के दर्शन करें। और जब मन्दिर के परिसर से बाहर निकलने लगें तो तीन बार बोलें “अस्सहि अस्सहि अस्सहि।” मतलब मेरे भीतर मन्दिर की सारी सकारात्मक ऊर्जा आ जाये, आ जाये……। उसके बाद अपने आप को रीचार्ज करके मन्दिर से जाएँ।

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