मंदिरों के शिखरबद्ध या गुम्बदाकार होने का क्या कारण है?

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शंका

हमारे सभी मन्दिर शिखर बद्ध होते हैं। अन्य धर्म स्थलों के ऊपर भी सारी छत न होकर शिखर या गुम्बद की शय होती है। क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण या धार्मिक कारण भी है?

समाधान

निश्चित है! जब शिखर का गुम्बदाकार निर्माण होता है, उसके पीछे का कारण मन्दिर में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का संग्रह करना होता है। मन्दिर में पूजा, पाठ, जाप व अनुष्ठान आदि से विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है। वो ऊर्जा गुम्बदाकार मन्दिर संचित रहती है। हमारे द्वारा उच्चारित ध्वनि की तरंगें ऊपर जाती हैं और उस गुम्बद से टकराकर वापस लौटती हैं और वो चार्ज कर देती हैं ये इसका विज्ञान है। इसीलिए ध्यान के लिए भी पिरामिडिकल स्पर्श का प्रयोग किया जाता है। आज कल तो इस पर बड़ा रिसर्च हुआ है। पिरामिड के नीचे ध्यान करा कर लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी दिया जाता है। ये जो पिरामिड का आकार है हमारे यहाँ के गुम्बद का पुराना आकार है। तो गुम्बज का पुराना आकार है। तो गुम्बद के आकार से पूरे के पूरे ब्रह्माण्ड से जो सकारात्मक शक्तियाँ हैं, आकर्षित होती है और मन्दिर की पूजा अर्चा से उत्पन्न जो पॉजिटिव वेव है वो विनष्ट नहीं होती है। मन्दिरों में या पूजा स्थानों में मुख्य रूप से गुम्बजों का प्रयोग किया जाता है। 

शास्त्रों में ऐसा लिखा गया हैं कि जिस मन्दिर में कलश, शिखर, ध्वजा न हो उस मन्दिर के पूजा पाठ का हमें वांछित परिणाम नहीं मिलता है। बल्कि एक जगह तो लिखा कि  ऐसी जगह पूजा पाठ निष्फल है। मैं निष्फल तो नहीं कहता क्योंकि कुछ न कुछ तो मिलेगा पर हमें जितना चाहिए उतना नहीं मिलता है। इसलिए मैंने कहा कि वांछित परिणाम नहीं मिलता। क्योंकि वहाँ वैसा positive vibration (साकारात्मक कम्पन) नहीं मिलेगा जो हमारी भाव धारा को परिवर्तित करे। ये एक बड़ा प्राचीन विज्ञान है जिसे आज लोगों ने भुला दिया।

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