मन्दिरों के ऊपर अक्सर ध्वजा फहरायी जाती है। क्या इसका कोई खास उद्देश्य है?
मंदिर के ऊपर ध्वजा और कलश- इनका विशेष उद्देश्य है। ध्वजा को पताका भी बोलते हैं, वो हवा में लहराती है। पताका के हवा में लहराने से जो वाइब्रेशन पैदा होता है वो पॉजिटिव वेव को उत्पन्न करता है और इससे एक धार्मिक स्थल होने का प्रतीक बनता है इसकी पहचान होती है। मन्दिर में ही नहीं, पुराने जमाने में धार्मिक जनों के घर पर भी ध्वजा हुआ करती थी। जब हनुमान लंका में गये तो लंका में किसी धार्मिक व्यक्ति को कहाँ खोजें? यहाँ तो सब दुष्ट लोग हैं। उनको पूरी लंका में एक घर में ध्वजा दिखायी पड़ी, तो उन्होंने समझ लिया कि ये जरूर किसी धर्मात्मा का घर होगा। उसमें उतरे तो वो विभीषण का महल था। तो ये धार्मिक भावनाओं का प्रतीक है। ध्वजा जय की प्रतीक होती है। धर्म की जय होते रहे, इसकी प्रतीक ध्वजा है और उसके ऊपर जो कलश होता है उससे भी vibration होता है जो पॉजिटिव वेव को प्रकट करता है। इसलिए शास्त्रों में लिखा है कि जिस मन्दिर में ध्वजा और कलश नहीं होते हैं उनकी जप, तप, पूजा, पाठ सार्थक नहीं हो पाते हैं। ये ध्वजा एक पहचान है। मन्दिर की पहचान उसकी ध्वजा और कलश से होती है। इसलिए इसे अनिवार्य रूप से लगाना चाहिए।
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