श्रावक के लिए मोक्ष का क्या मार्ग है?

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शंका

मोक्ष मार्ग का सही रास्ता बताइये?

समाधान

मोक्ष मार्ग का सही रास्ता क्या है? मोक्ष मार्ग का एक ही रास्ता है।

“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः”

यही रास्ता है और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। जब सही रास्ते पर आओगे तो वह मोक्ष मार्ग होगा। गलत रास्ता छोड़ दोगे तो सही रास्ता पकड़ोगे। हम लोग अनादि से गलत रास्ते को पकड़े हुए हैं; वो ‘मोह’ मार्ग है। मोह मार्ग को छोड़ोगे तो हमारा मोक्ष मार्ग शुरू होगा। मैं समझता हूँ कि आपके प्रश्न का आशय कुछ दूसरा है। आप ये पूछना चाह रहे हैं कि हम अपनी भूमिका में रहते हुए कैसे आगे बढ़ें? उसका सरल रास्ता क्या है? तो सरल रास्ता अपनी भूमिका के अनुरूप है। देखिए हमारे यहाँ भगवान ने दो प्रकार के धर्म का उपदेश दिया। एक साधु धर्म और दूसरा श्रावक धर्म। यदि आप निवृत्ति का मार्ग अंगीकार करने में समर्थ हों, तो साधु धर्म को अंगीकार करो और दीक्षा लेकर आगे बढ़ो। यदि वैसा करने की सामर्थ्य नहीं है, तो आपके लिए दूसरा मार्ग श्रावक धर्म बताया गया है। श्रावक धर्म यानी ‘श्रावकोचित’ धर्म का पालन करें। 

श्रावक के तीन भेद बताए हैं- पाक्षिक श्रावक, नैष्ठिक श्रावक और साधक श्रावक। पाक्षिक श्रावक एक दम पहली कक्षा है। पाक्षिक श्रावक का मतलब जो जैन धर्म में, जिन भगवान का पक्ष रखते हुए, जैन कुल क्रमानुसार अपना आचरण रखें। वो पाक्षिक श्रावक है। तो सबसे पहले जिनेन्द्र भगवान पर पक्की श्रद्धा, सच्चे देव-शास्त्र-गुरु पर समर्पण का भाव रखें। देव-शास्त्र-गुरु पर समर्पण का भाव होने के उपरान्त आप जैन कुल के अनुरूप जो आचरण है उसका पालन करें। रात्रि भोजन का परित्याग करें। अशुद्ध, अभक्ष्य व अमर्यादित पदार्थों का त्याग करें, और अपने जीवन में शुद्धता और सात्विकता को स्वीकार करें। ये पहली कक्षा है। ये पाक्षिक श्रावक है। इस पाक्षिकपने को आप पूरा करें। 

नैष्ठिक श्रावक-सातवीं प्रतिमा से लेकर ग्यारहवीं प्रतिमा तक बताया गया है। जो व्रतों का निष्ठा पूर्वक पालन करे वो नैष्ठिक श्रावक कहलता है। ये चर्चा प्रतिमा से सन्दर्भ में मैंने पहले की है। आगे चलकर रात्रि में जल का भी त्याग कर दे। नैष्ठिक बनेंगे आप तब जब चारों प्रकार के आहार का त्याग, पूर्णतः अभक्ष्य और अमर्यादित पदार्थों का त्याग, अपने खान-पान, आचार-विचार और व्यवहार में अहिंसा का अनुपालन करते हुए वीतराग आत्मा के प्रति आस्थावान बनकर आगे बढ़ते हैं, तो मोक्ष मार्ग की शुरुआत होती है। 

आप अपनी भूमिका के अनुरूप मोक्ष मार्ग में आगे प्रवर्तन करने का भाव रखो यही एक मात्र रास्ता है, और अन्दर से हमारी परिणति क्या होनी चाहिए? संसार, शरीर और भोगों के प्रति उदासीनता का भाव, उनके प्रति विरक्ति का भाव, उनमें अनुरक्ति न हो, उनमें विरक्ति हो, उनके प्रति आसक्ति न हो, उनसे ज़्यादा लगाव, जुड़ाव न हो। अपने आत्मा के प्रति रूचि और आत्म कल्याण की प्रबल उत्कंठा मन में यदि बनी रहती है, तो मानकर चलिए कि आपका संसार जल्दी सिमट ने वाला है।

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