‘उदक चन्दन तन्दुल…’ में सुदीप और सुधूप का क्या अर्थ है?

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शंका

मेरी जिज्ञासा है “उदक चंदन तंदुल पुष्पकैश्चरु सुदीप सुधूप फलार्घकैः” में सुदीप और सुधूप का क्या अर्थ है?

समाधान

उदक चन्दन तन्दुल पुष्पकै:” ये जो पूरा छन्द है यह मन्दाक्रान्त छन्द में रचित एक छन्द है और जिसने भी रचा उसके रचयिता का तो पता नहीं लेकिन निश्चित रूप से वह बड़ा पुण्यशाली होगा जो समस्त जैन परम्परा के जन जन के गले में बैठ गया। इसमें अष्टद्रव्य का उल्लेख है। “उदक चन्दन तन्दुल पुष्पकै:”, उदक यानि जल, चन्दन यानि चन्दन, तन्दुल यानि अक्षत पुष्पकै: यानि पुष्पों के द्वारा, चरू यानि नैवेद्य, सुदीप यानि अच्छा दीप और सुधूप उत्तम धूप और फल और अर्घ्य। फिर आगे ये एक गड़बड़ करते हैं “धवल मंगल गान रवाकुले, जिनगृहे जिननाथमहं यजे”, तो कुछ लोग धवल मंगल ‘ज्ञान’ बोल देते हैं, धवल-अच्छे मंगलकारी और गान यानि गीतों के, रव यानि ध्वनि से आकुल मंगलगान होता है। तो कैसे धवल उज्जवल प्रशस्त मंगलगान से व्याप्त ‘जिनगृहे- जिनेन्द्र भगवान के इस मन्दिर में, “जिन नाथं अहं यजे” जिनेन्द्र भगवान की मैं पूजा करता हूँ। ये उसके पीछे का भाव है।

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