शंका
हम भगवान का अभिषेक करते हैं तो गन्धोदक क्यों बोलते हैं?
समाधान
तीर्थंकर की एक विशेषता होती है, उनके शरीर में एक अपूर्व गन्ध रहती है। चंदन जैसी गन्ध, अलग-अलग तीर्थंकारों के शरीर में अलग-अलग तरह की गन्ध होती है। हम लोग कहते हैं कि भगवान के अतिशयों में सुगन्धित तन होता है। तो वो उदक जो भगवान के स्पर्श से, उनके शरीर के गन्ध से जुड़ जाये उसका नाम गन्धोदक है। ये नहीं है कि सुगन्धित जल भगवान पर डाले तो वह गन्धोदक है। ये बात ठीक नहीं है। गन्धोदक का मतलब कि भगवान के शरीर से संस्पर्श से युक्त जल की धारा! इसलिए माघनंदी जी ने अपने पाठ में लिखा कि
शुद्धोदकैरभिनयामि जिनाभिषेकम्
हम शुद्ध जल की धारा से भगवान के अभिषेक को करेंगे। गन्धोदक की आड़ में हम उसे सुगन्धित करें ये उचित नहीं है। भगवान के शरीर से जो स्पर्श गया उसका नाम गन्धोदक है।
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