पंच-परमेष्ठी की आरती में ‘छट्ठी ग्यारह प्रतिमाधारी’ का तात्पर्य?

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शंका

आरती में हम छट्ठी ग्यारह प्रतिमा कहते हैं, इससे क्या तात्पर्य है?

समाधान

इसे पंच परमेष्ठी की आरती में जोड़ दिया गया है लेकिन ये पंच परमेष्ठी की आरती नहीं है। 

परमेष्ठी पाँच ही हैं-अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु! ये छठा कहाँ से आ गया? ये जोड़ दिया गया। वो श्रावक है, श्रावक आदर का पात्र है, आराधना का पात्र नहीं। द्यानत राय जी तो पंडित जी थे, सो लिख दिये, वो कवि थे; क्या आगम में लिखा है? दिगम्बरों में पंच परमेष्ठी की आरती अलग है। श्वेताम्बरों में पंच परमेष्ठी की जो है, उसमें केवल पाँचों परमेष्ठी के सूचक पाँच पद हैं इसके अलावा और कुछ नहीं है।

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