युवाओं के लिए नियम का क्या महत्त्व है?

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शंका

हमारी युवा पीढ़ी दैनिक जीवन में ऐसे कौन से छोटे-छोटे नियम ले ताकि उनमें नियम लेने की आदत बने और भविष्य में वह बड़े नियम लेने की उनमें इच्छाशक्ति जगे?

समाधान

सबसे पहले तो हम अपने बच्चों के अन्दर नियम का महत्त्व जगायें । नियम थोपे नहीं जाते, नियम लिए जाते हैं। बच्चों के मन में बात बैठाना चाहिए कि नियम हमारे लिए कितना उपयोगी है?

एक बार की बात है, मैं सम्मेद शिखरजी में था, दिल्ली का एक परिवार आया, उनके साथ एक २४ साल का लड़का था। भारत से बाहर से एम. बी.ए. कर रखा था। उसकी माँ ने कहा ‘महाराज जी, इसको कोई नियम दो।’ उसने छूटते ही कहा ‘मैं नियम नहीं लेता, मुझे नियम से एलर्जी है।’ हमने कहा- “बिल्कुल ठीक है, मैं तुम्हें कोई नियम नहीं दूँगा पर एक बात का जवाब दो। क्या क्रिकेट खेलते हो?” ‘खेलता हूँ।’ हमने कहा- “क्रिकेट के जितने रूल्स है उनको अलग कर दो तो क्रिकेट में कैसा लगेगा?” बोले- ‘महाराज जी मज़ा ही बिगड़ जाएगा।’ “क्यों?” ‘महाराज जी मज़ा ही रुल का है।’ “भैया, मैं तुमसे केवल इतना ही कहना चाहता हूँ जैसे क्रिकेट का मज़ा तभी है जब उसके रूल से बन्धे रहो, जीवन का मज़ा भी तभी है जब नियमों से बन्धे रहो।”बच्चों के  दिल-दिमाग में ये बात बैठाओ, उसे ये बात जम गई, बोले ‘महाराज जी आप बिल्कुल सही हैं। आप सही बोल रहे हैं, आपके जीवन में मज़ा तभी है जब आप नियम से बन्धो। लेकिन कैसे मजा?’ हम बोले “नियम से बन्धो और उसके तोड़ने के लिए चुनौती आये, डटे रहो, तब तो जीवन का मज़ा है। अपनी कुछ बाऊँडरीस होनी चाहिए, अपने कुछ लिमिट्स होने चाहिए।”

यह बात उनके मन में बैठा दीजिये और सबसे प्रारम्भिक चरण में बच्चों को यह बतायें कि तुम्हारी प्रारम्भिकता क्या होनी चाहिए। यह तुम्हारी प्रारम्भिक लिमिट है-मद्य, मांस, मधु का त्याग, व्यसन और बुराइयों का त्याग जीवन पर्यंत करो, इसे तुम कभी क्रॉस नहीं करोगे। फिर अपनी शक्ति और परिस्थिति के अनुरूप आगे बढ़ते जाओ तो बच्चे बहुत अच्छे से नियम ले सकते हैं। वह मेरे पास १५ मिनट बैठा, मैंने एक भी बार नहीं बोला कि नियम लो। आखरी में उठते समय बोला ‘महाराज एक नियम लेकर के जाना चाहता हूँ।’ बोले- ‘साल में एक बार आपके पास आएँगे।’ हम बोले बहुत अच्छा, ये नियम जीवन को बदल देगा।

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