सहस्रकूट जिनालय की क्या विशेषता है?
ऐसा आगम में वर्णन आता है; शायद श्रीपाल चरित्र में भी वर्णन आता है कि एक सहस्रकूट जिनालय का पट बंद था, श्रीपाल के प्रभाव से वो जिनालय खुल गया। वर्तमान में सहस्रकूट जिनालय ऐसे बन रहे हैं जिनमें एक ही स्तम्भ पर अनेक प्रतिमा जी उत्कीर्ण हों। ऐसा टीकमगढ़ के पास बानपुर में जिनालय है जो लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन है, इसी का एक रूप रहली, पटना में और कोनी जी में भी है, वो दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी का है। यहाँ एक ही फलक पर अलग-अलग प्रतिमाएँ अंकित की गईं। यहाँ मधुवन में भी ऐसे सहस्रकूट जिनालय हैं। वर्तमान में परमपूज्य आचार्य गुरूदेव के आशीर्वाद से सहस्रकूट जिनालय की रचना हो रही हैं जहाँ बड़ी-बड़ी प्रतिमाएँ विराजमान हो रही हैं।
मुझे ऐसा लगता है कूट का अर्थ होता है, चोटी या शिखर। ऐसा कोई जिनालय किसी ने कभी बनवाया होगा जिसमें १००८ शिखर हों और १००८ भगवान विराजित हों, उस जिनालय का स्वरूप ही अलग होगा। ऐसा जिनालय जो दस-पाँच एकड़ में हो, वहाँ यदि कोई जाए तो उसकी भाव विशुद्धि ही कुछ और होगी। लेकिन अल्प शक्ति और सामर्थ्य वाले होने के कारण एक सहस्रकूट ही बना लें तो वह सबसे अलग होगा। एक सहस्रकूट जिनालय की वन्दना का अनन्त गुना पुण्य प्राप्त होता है क्योंकि वहाँ हम एक साथ सहस्रों जिन प्रतिमाओं का वंदन करते हैं।
Leave a Reply