जैन धर्म में ध्यान का स्थान और महत्त्व क्या है?

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शंका

क्या जैन धर्म में हमें ध्यान के बारे में शिक्षा बहुत कम दी जाती है?

समाधान

देखिए, अगर हम जैन शास्त्रों को पढ़ें तो जैन धर्म का आधार “ध्यान” है। आजकल ध्यान का चलन थोड़ा कम हो गया है; हमारे यहाँ जो सामायिक की विधि है वह ध्यान ही है। इसलिए सामायिक भी ध्यान की एक प्रारंभिक प्रक्रिया ही है जिसका हम लोगों को अभ्यास करना चाहिए।

लोग आजकल पूजा-पाठ और स्वाध्याय में ज्यादा ध्यान देते हैं और यह एक अनुभव सिद्ध बात है कि व्यक्ति यदि पूजा-पाठ के साथ यदि सामायिक और ध्यान करे तो और बहुत अच्छा काम कर सकते हैं। लेकिन एक बात मैं और आपसे कहना चाहता हूँ कि इसका मतलब यह नहीं समझना कि पूजा-पाठ निरर्थक है, पूजा-पाठ निरर्थक नहीं है। ध्यान उनके लिए है जो थोड़ी उच्च भूमिका में पहुँच गए हैं, जिनके पास एकाग्रता की साधना है जो उस भूमिका में पहुँचने में असमर्थ हैं, उनके लिए उपासना है, पूजा है, पाठ है और यदि व्यक्ति सच्चे मन से पूजा-पाठ करता है तो उस पूजा-पाठ के बल पर वह अपने जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन कर सकता है। 

आज तो विज्ञान भी इस बात को पूरी तरह सिद्ध कर चुका है कि प्रार्थना भी मनुष्य की मनोवृत्ति में बदलाव लाती है इसलिए इसे कभी निरर्थक मत समझना।

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