नियमों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?

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शंका

आज के युवा वर्ग और बच्चे, मुनियों एवं माताजी को आहार देते समय कोई नियम लेते हैं फिर आहार दान देते हैं, यह तो अच्छा है लेकिन उनके जो साथी नियम नहीं लेते हैं वे बाद में उनकी हँसी उड़ाकर कहते हैं- “तुम तो फंस गए, हम बच गए।” नियमों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है व किस उम्र से, किस प्रकार के नियमों का पालन करना चाहिए और हम अपने नियमों पर अटल कैसे रहे?

समाधान

सच्चाई ये है कि तुम अभी भी फंसे हो, वह बच गया है। हम पाप के जंजाल में तो अनन्त काल से फंसे है। अगर पाप और बुराई से बचने का तुम्हारे मन में मनोभाव जाग जाएँ तो नियम तुम्हें देना नहीं पड़ेगा, तुम खुद उत्साहित होकर नियम लेना शुरू कर दोगे। पहले सोचो कि नियम किस चीज का लिया जाता है, जिसमें पाप है, जिसमें बुराई है। उस पाप और बुराई से बचने के लिए हम नियम लेते हैं जो हमारे जीवन को सन्तुलित करता है। पाप के चक्कर में तो हम अनादि से फंसे हुए हैं जो हमारे जीवन को पतित कर रहा है, जो हमारे जीवन को दुखी बना रहा है, तो उस पाप से अपने आप को मुक्त करें और अपने जीवन की धारा को उसी अनुरूप बदलने की कोशिश करें तो हम नियम लेने के लिए उत्साहित होंगे। 

जिसके हृदय में नियम के प्रति निष्ठा जग जाती है पाप भीरुता आती है वह स्वयं नियम लेता है। मैं तो अक्सर नियम देता नहीं, लोग खुद मुझसे आकर के नियम लेते हैं। एक जगह की बात है, आहार हो रहा था, आहार पूर्ण हुआ, बहुत लोगों ने आहार दिया, एक बच्चा होगा १४ साल का, वह मेरे पास आया और बोल- “आज आपको आहार दिया, बहुत अच्छा लगा, लेकिन एक बड़ी तकलीफ हो रही है।” मैंने पूछा “क्या?” बोला- “आपने हमें कोई नियम नहीं दिया।” “ठीक है! जो नियम लेना है ले लो, तकलीफ क्यों हो रही है?” “नहीं महाराज, हमारी दादी कहा करती थी कि मुनि महाराज को आहार देना तभी सार्थक होगा जब कोई नियम लोगे। मैं पिछले ६ साल से आहार दे रहा हूँ, जिस दिन ८ साल का हुआ था, उसी दिन से मैंने आहार देना शुरू किया। महाराज जी मैंने बहुत सारे नियम लिए।” उसने अपने नियम गिनाये – “८ वर्ष की उम्र में मैंने मद्य, माँस, मधु, आठ उदम्बर फलों का त्याग किया था। जब भी महाराजों को आहार देता हूँ, एक दिन के लिए ही सही कोई नियम जरूर लेता हूँ, महाराज जी आप भी मुझको कोई नियम दीजिए”- यह है निष्ठावान की बात। 

वही सही पुण्य कमाएगा, तुम लोग तो बहाना ढूंढोगे, फंसे हो, फंसे रह जाओगे। अगर फंसने से बाहर निकलना है, तो अपनी निष्ठा को जगाइए और लिए हुए नियम को निष्ठापूर्वक निभाइए।

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