जब हम घर पर होते हैं तो हम जूते उतार कर खाना खाते हैं और पढ़ाई करते हैं; पर जब स्कूल में होते हैं तब हम जूते पहन कर पढ़ाई करते हैं और खाना खाते हैं। इसका हमारे जीवन पर प्रभाव क्या पड़ेगा? मार्गदर्शन दीजिए?
इस पर बहुत गम्भीरता से विचार करना चाहिए। प्राय: जूते चमड़े के होते हैं या किसी भी मेटेरियल के भी हों जूते तो नेगेटिव एनर्जी देते हैं। पढ़ाई के समय में भी जूते बाहर होना चाहिए और भोजन के समय में भी जूते बाहर होना चाहिए कायदा तो यही कहलाता है।
अभी स्कूल के ड्रेस कोड में जूते हैं और जूते पहनाकर के पढ़ाना यह भारतीय परम्परा के विरुद्ध है। ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए कि बच्चों से जूते उतरवा करके उन्हें पढ़ाया जाए क्योंकि हमारे यहाँ विद्यालय को मन्दिर माना जाता है और मन्दिर में वैसे ही पवित्रता रखनी चाहिए जैसे भगवान के मन्दिर में पवित्रता होती है, जैसे भगवान् के मन्दिर में जूते का प्रवेश वर्जित है। सच्चे अर्थों में विद्यालय में भी जूते का प्रवेश वर्जित होना चाहिए क्योंकि जूते पहन करके अगर बच्चे पढ़ते हैं तो और जूते उतार करके पढ़ते हैं, तो इनमें बहुत फर्क होता है। अगर जूते उतार करके पढेंगे तो उनकी मेमोरी ज़्यादा स्ट्रांग होगी और यह ज्ञान की विनय होगी। हमें उसकी पवित्रता को बना कर रखना चाहिए।
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