मेडिकल सेवाओं के गिरते स्तर में समाज का क्या कर्त्तव्य है?

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शंका

आजकल डॉक्टर सेवाभावी न होकर प्रोफेशनल होते जा रहे हैं, ऐसे में गरीब व्यक्तियों के लिए इलाज कराना बहुत कठिन और दुष्कर हो गया है। बहुत बार देखने में आता है कि डॉक्टर फिजूल में टेस्ट करवाते हैं, कभी-कभी पैसों के अभाव में डेड बॉडी तक नहीं देते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में समाज का क्या योगदान हो सकता है जिससे कोई भावी भगवन्त इलाज के अभाव में असमय मृत्यु का शिकार न हो?

समाधान

मेडिकल हो या और कोई; हर प्रोफेशन में किसी न किसी प्रकार की गिरावट आई है।  लेकिन हाँ, मेडिकल जैसे प्रोफेशन की गिरावट ऐसी गिरावट है जो हजम होने लायक नहीं है। हमारे यहाँ चिकित्सक को प्राणाचार्य कहा, उसे भगवान का प्रतिनिधि माना गया है और कोई पेशेंट भी पूरी तरह चिकित्सक के ऊपर निर्भर होता है। अतः उसको चाहिए कि उसकी अच्छे से अच्छी चिकित्सा करे; लेकिन जबसे इस चिकित्सा, जिसे सेवा की पर्याय माना जाता था, ने एक उद्योग का रूप धारण किया तब से अनेक प्रकार की विकृतियाँ बढ़ गई हैं। आज चिकित्सा का तो स्तर बढ़ा है लेकिन चिकित्सकों का स्तर गिर गया है। इसके पीछे कई कारण हैं। मैं पूरी तरह चिकित्सकों को दोषी नहीं मानता पर आज की इस बढ़ती हुई उपभोक्तावादी सोच इसमें मुझे एक प्रबल कारण दिखती है। 

सोचिए एक डॉक्टर को डॉक्टर बनने में एमबीबीएस और उसके बाद पोस्टग्रेजुएट करने में एक-आध करोड़ का खर्च तो हो ही जाता है। एक से डेढ़ करोड़ का खर्चा, उससे ज़्यादा भी लग सकता है। ८ से १० साल उसके इस में खपते हैं। उसके बाद उसकी डॉक्टरी बिना नर्सिंग होम खोले चलती नहीं, उसको जमने के लिए नर्सिंग होम खोलना पड़ता है। उसके लिए बैंक से लोन लेना पड़ता है, अब जब बैंक से लोन लेगा इनकी किस्त चुकाने की पहली समस्या होती है। मेरे एक परिचित ने बताया कि ‘महाराज मेरे एक मित्र का एक बड़ा नर्सिंगहोम है। वह कहता है कि हमको ₹२२,००० प्रतिदिन तो बैंक की किस्त भरनी होती है। हम तो जैसे ही पहले हॉस्पिटल खोलते हैं तो पहले सोचते हैं २२,००० कैसे आयें? उसके बाद इलाज को देखते हैं उस समय हमारे लिए जो पेशेंट आता है वह पेशेंट नहीं दिखता, हमको हमारा क्लाइंट दिखता है।’ इसमें संवेदना धीरे-धीरे सूख रही है। 

व्यवसायिकता को ठीक करना चाहिये, इसके लिए दो स्तर पर काम होना चाहिए, शासन के स्तर पर नर्सिंग होम को बढ़ाना चाहिए। शासन के स्तर पर बड़े-बड़े अस्पताल खुलवाना चाहिए। उसमें अच्छे चिकित्सकों को अच्छे पैकेज के साथ रखना चाहिए ताकि यह अनावश्यक भार से बचा जाए। आजकल तो कुकुरमुत्तों की तरह नर्सिंग होम खुलने लगे और जगह-जगह बड़े-बड़े एड होर्डिंग्स लगने लगे डॉक्टरों के, ये शुद्ध व्यवसायीकरण का परिणाम है। समाज के स्तर पर भी इनको प्रोत्साहित किया जा सकता है लेकिन इसमें भी ऐसी समस्यायें है कि व्यवसायिककरण हो जाने के कारण आज चैरिटेबल हॉस्पिटल को चलाना बड़ी टेढ़ी खीर बन गई। इसे हमें समदृष्टि से देखना चाहिए। डॉक्टरों का इतना बड़ा इन्वेस्टमेंट हो जाने के कारण वो भी आउटपुट चाहते हैं क्योंकि पैसा लगा है, तो पैसा तो पाना चाहेंगे। कई बार पेशेंट जानबूझ कर देना भी नहीं चाहता डाक्टर के सामने सब पेशेंट गरीब बन जाते हैं। सब दृष्टि से देख करके ही इस पर विचार करना चाहिए।

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