जैनागम के अध्ययन में-तत्त्व, द्रव्य और पदार्थ-इनका अध्ययन करने को मिलता है। इन तीनों में क्या मौलिकता हैं? इनका अलग – अलग प्रकार से व्याख्यान क्यों किया गया एवं जीव की अपेक्षा से जीव तत्त्व, जीव द्रव्य और जीव पदार्थ इनमें क्या भेद हैं तथा क्या मौलिकता हैं?
इसमें एक और जोड़ दीजिए जीव अस्तिकाय तत्त्व, द्रव्य, पदार्थ और अस्तिकाय ये हमारे जैन तत्त्व ज्ञान का मूल आधार हैं। इनकी जो विवेचना है वो अलग-अलग दृष्टियों से है। हम इसे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से कह सकते हैं। जब हम द्रव्य की अपेक्षा से किसी का वर्णन करें तो द्रव्य आ जाता हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से उसके प्रदेश यानी अस्तिकाय आ जाता हैं। काल की अपेक्षा से जब हम विचार करें तो उसकी पर्याय पदार्थ आ जाता हैं और भाव की अपेक्षा से करते हैं तो उनके भीतर के गुण तत्त्व आ जाता हैं। तो यह द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव की अलग – अलग दृष्टि से इन चारों का विवेचन समझना चाहिए।
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