तीर्थयात्रा सामूहिक रूप से और अकेले करने में क्या अंतर है?

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शंका

जबलपुर से सम्मेद शिखर के लिए एक सामूहिक रूप से ट्रेन में जाने से और अकेले यात्रा करने में क्या अन्तर होगा?

समाधान

पाप करो तो अकेले और पुण्य करो तो सबके साथ! 

पाप करने का जब भी प्रसंग आए तो अकेले करो, ताकि उसकी गन्ध कभी दूसरे को न लगे; और पुण्य करने का यदि मौका आए तो जितनों को जोड़ा सको, शामिल करो क्योंकि उसमें जितने लोग आगे होंगे, तुम्हारे निमित्त से होंगे; उन सबके पुण्य का एक भाग तुम्हारे खाते में खुद-ब-खुद जुड़ जाएगा। 

अनेकों को यात्रा कराना, उसमें शामिल होना…इससे एक सामूहिक वातावरण बनता है और यह एक आदर्श है।

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