सल्लेखना और आत्मघात में क्या अन्तर है?

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शंका

सल्लेखना, आमरण अनशन, इच्छा मृत्यु, आत्मघात, स्वाभाविक मृत्यु इनमें कितना फर्क है?

समाधान

सबसे पहली बात सल्लेखना, आमरण अनशन, इच्छा मृत्यु, आत्मघात इन के स्वरूप को समझे। सल्लेखना का मतलब होता है- सम्यक लेखना! धीरे धीरे कषाय और काया का कृष करते हुए दृष्टा बनना, यह सल्लेखना है। अपने अन्दर के विकारों का शोधन करते हुए, शरीर की शुद्धि करते हुए छूटते हुए शरीर को देखना सतलेखना, भली-भाँति इस छूटने वाले शरीर को देखना और व्याकुल न होना, मानना कि भिन्न चीज़ जा रही है। सल्लेखना आत्म-दृष्टा के जीवन में होती है, जो आत्मलीन हो जाता है वह सल्लेखना का सौभाग्य पाता है। और यह सल्लेखना मरने के लिए नहीं, जीवन मरण से उभरने के लिए ली जाती है। यह सल्लेखना किसी भी समय नहीं ली जाती, जीवन के अन्त में ली जाती है। जब शरीर छूटने की स्थिति में होता है, तब यह सल्लेखना ली जाती है।

आमरण अनशन एक राजनैतिक या अन्य किसी प्रकार के आंदोलन का प्रतीक है, जो किसी माँग की पूर्ति के लिए भोजन पानी को छोड़ा जाता है। जैन धर्म में ऐसे अनशन का विधान नहीं है। जैन धर्म में अनशन को तप कहा है। इस तपानुष्ठान का प्रयोग केवल आत्मा की शुद्धि के लिए करने का विधान है। अन्य किसी अपेक्षा के लिए नहीं, तो अगर आमरण अनशन के रूप में कोई व्यक्ति अनशन करता है और उस घड़ी में उसके साथ कुछ होता है, तो बात दूसरी हो जाती है धर्म उसकी आज्ञा नहीं देता।

जीवन में जब कभी इच्छा हो जाए, जीवन को जो समाप्त करना चाहे तो इच्छा मृत्यु के हिसाब से उसे ग्रहण कर सकता है, स्वीकार कर सकता है। जैन शास्त्र इसकी मान्यता कभी नहीं देता। जैन शास्त्र कहता हैं, मरने की इच्छा भी एक दोष है, इच्छा मृत्यु की बात ही अलग है। जीवन की और किसी भी स्थिति में सल्लेखना तो ली ही नहीं जा सकती। सल्लेखना की तभी अनुमति दी जाती है जब शरीर का छूटना अनिवार्य और अपरिहार्य प्रतीत होने लगे।

आत्मघात घोर पाप है, ‘आत्मघातम्महत्वपापम्’ हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया हैं इसलिए इस आत्मघात की तुलना की ही नहीं जा सकती क्योंकि आत्माघात का उद्देश्य जीवन का विनाश, मौत और जीवन की कभी किसी भी अवस्था में एकाएक एक झटके में अपने जीवन लीला को समाप्त कर देने का होता है। यह कषाय से पीड़ित होकर के की जाती है। सल्लेखना समता से, आत्मघात घोर हताशा, औषाध और तीव्र मानसिक असन्तुलन की स्थिति में होता है और यह आत्मघाती शरीर के विनाश को ही अपना विनाश मानकर आत्मघात करता है। जबकि सल्लेखना आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता को पहचानते हुए किया जाता है।

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