रोज की पूजा और विधान में क्या अन्तर है?

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शंका

रोज की पूजा और विधान में क्या अन्तर है?

समाधान

जिनेन्द्र भगवान की अष्ट द्रव्य से भक्ति का नाम पूजन है। यदि विधान को देखें तो ये पूजा का ही रूप है। लेकिन पूजा और विधान में एक अन्तर है- इसमें जब विधान शब्द जुड़ता है, ये महापूजा हो जाती है। पूजन में केवल पूजन होता है, विधान वह है जिसमें पूजन के साथ जाप व अनुष्ठान भी हो। इसमें विशेष रूप से जापानुष्ठान किया जाता है। फिर मण्डल रखा जाता है। मण्डल की रचना तो और विशेष स्थान रखती है। मण्डल का अर्थ होता है दिव्य विभूतियों के आवाहन के लिए तैयार किया गया एक गुप्त रेखाचित्र। लेकिन लोग आज मण्डल के स्वरूप को भूल गये हैं। मण्डल का अर्थ लोगों ने ये मान रखा है कि द्रव्य चढ़ाने का स्थान। पूजन अलग, विधान अलग और मण्डल विधान अलग है। मण्डल का जो प्राचीन स्वरूप दिया गया है हमें वही रखना चाहिए। उसका बड़ा तांत्रिक प्रभाव होता है। उससे उसकी रिद्धि-सिद्धि बढ़ती है। एकाग्रता बढ़ती है। पूजन और विधान में ये अन्तर है। 

पूजन में जाप करो न करो, तो चलता है; विधान में जाप विशेष रूप से करना होता है। जाप ज़रूरी है। जितना जप सको, जपो,  ये तुम्हारी एक तपस्या अनुष्ठान है। इसे केवल एक आयोजन मत मानना।

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