प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंदता में क्या अंतर है?

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शंका

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में आजकल लोग सफलता के लिए जल्दी उड़ान भरने की कोशिश करते हैं और फिर असफल भी होते हैं, उनके लिए क्या संदेश है?

समाधान

आज का युग प्रतिस्पर्धा का है और उसमें आगे निकल जाने वाले लोग अपने आप को सफल मानते हैं। कदाचित कोई पिछड़ जाएँ या असफल हो जाएँ तो अन्दर से टूट जाता है। सफलता और असफलता दोनों में स्थिरता की आवश्यकता है। 

प्रतिस्पर्धा करें पर मन में कभी प्रतिद्वंदिता न आने दें। आप आगे बढ़े पर कभी किसी को पीछे ठेलने की कोशिश न करें। जीवन में यह हमेशा ध्यान में रखें कि प्रतिस्पर्धा प्रगति का आधार है और प्रतिद्वंदिता कटुता का मूल तो मन में कभी प्रतिद्वंदिता का भाव न आने दें। प्रतिस्पर्धा में आगे निकल जाएँ और सफल हो जांए तो उसका कभी मान न करें और एक बात हमेशा ध्यान रखे कि आगे बढ़ने का नाम सफलता नहीं है। अपने आप को मजबूत बनाने का नाम सफलता है। सफल वह नहीं जिसके पास खूब पैसा हो, पावर (power) हो, सफल वह है जो हर स्थिति में अपने आप को ढालने में समर्थ है। जिसके मन में प्रसन्नता है, सच्चे अर्थों में उसके ही जीवन में सफलता है। जिस सफलता को लोग सफलता मानते हैं वह बड़ी उथली सफलता है, बाहर की सफलता है, इस सफलता में जीवन की सार्थकता नहीं। 

दूसरी बात, जिस क्षेत्र में मनुष्य आगे बढ़ना चाहता है और यदि कदाचित उसमें सफल न हो पाए तो भी अपने मन में हीन भावना उत्पन्न न होने दें। नई सम्भावनाएँ तलाशे और नई सम्भावना तलाश करके उसके लिए रास्ता बनाए। एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि 99 द्वार बंद होते हैं तो 100 वां दरवाजा हमेशा खुलता है और हमारी दृष्टि खुले द्वार की ओर होना चाहिए बंद दरवाजे की ओर नहीं। 

मेरे सम्पर्क में एक युवक था। वह यूपीएससी (UPSC) में 3 बार बैठ गया, दो बार इंटरव्यू (interview) भी दे आया पर सिलेक्शन (selection/ चयन) नहीं हुआ और अपनी इस असफलता के कारण वह एकदम टूट चुका था। पारिवारिक परिस्थितियाँ भी उसके अनुकूल नहीं थी। बहुत हताश था, मेरे पास आया। मुझसे उसने अपनी व्यथा कही मैंने उसे समझाया कि आप अपने आप को असफल मान रहे हो, मेरी दृष्टि में आप बड़े सफल व्यक्ति हो। उसने कहा- कैसे? मैंने पूछा- यूपीएससी में कितने लोग बैठते हैं?, उसने कहा- लाखों, मैंने पूछा- लाखों में कितने लोग प्री (preliminary) निकालते हैं? वह बोला- हजारों, हजारों में मैन्स कितने निकालते हैं?, उसने कहा- सैकड़ों। मैंने फिर पूछा- सैकड़ों में इंटरव्यू में कितने जाते हैं? जितनी सीट होती हैं उससे 3 गुने, उसने कहा. मैंने उसे समझाया- आप उन थोड़े से लोगों में शुमार हो। कितने लकी (lucky/ भाग्यशाली) हो, लाखों से 200, 300, 400, या 1000 के भीतर सीमित हो गए तो यह देखो आप कितने आगे बढ़े, आप सक्सेस हुए हो, आप सफल हो। अपने आपको असफल मानना बंद करो। एक बात ध्यान रखो, दुनिया में जिनका भी कैरियर है क्या वे सब आईएएस (IAS) हैं? केवल आईएएस का कैरियर नहीं होता। हर क्षेत्र में रहने वाला व्यक्ति कैरियर बना लेता है, तो आप हारो मत, अभी आपके पास एक अटेम्प्ट (attempt) बाकी है और जब तक अटेम्प्ट बाकी हैं, आप अपना शत-प्रतिशत उसमें समर्पित करो। मनुष्य के पास जब तक अवसर और अनुकूलता हो, अपना प्रयास जारी रखना चाहिए। उस प्रयास में कोई कोर कसर नहीं छोड़नी चाहिए। आप प्रयास करो और अभी कुछ सोचो ही नहीं कि मैं सफल नहीं हुआ। दुनिया में पहले अथवा दूसरे अटेम्प्ट में निकलने वाले आईएएस तो बहुत कम होते हैं, बल्कि 4-4 अटेम्प्ट पूरा करने के बाद निकलने वाले आईएएस ज़्यादा होते हैं। अभी भी आपके पास अवसर है। मैंने उसे समझाया और झकझोरा, आपको सुनकर बड़ा अच्छा लगेगा उसने अपनी पूरी शक्ति के साथ अपना चौथा और आखिरी अटेंप्ट किया और उसका 153 वाँ रैंक (rank) आया। अभी वह इंडियन रेलवे सर्विस में अपना काम कर रहा है और जीवन में सफल हो गया।

कभी भी अपनी असफलता में हीनता का अनुभव न करें। अपनी शक्ति का फिर से संयोजन करें। पूरी शक्ति और उत्साह के साथ अपने आप को आगे बढ़ाने की कोशिश करें और सामने कोई दीवार आती है, तो उस दीवार से सिर टकराने की जगह, दीवार को क्रॉस (cross) कैसे करें, यह बात दिमाग में लाना चाहिए। निश्चित आपको जीवन में सफलता मिलेगी।

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