जिनेन्द्र वर्णी जी के शब्दकोष के अनुसार सम्यक् दृष्टि जीवों की संख्या दो या तीन होती हैं एवं अधिकतम ४ हो सकती हैं, इसका क्या आशय है? क्या काल अपेक्षा भरत क्षेत्र के सम्बन्ध में यह लागू है या नहीं? यदि नहीं, तो वर्तमान में सम्यक्त्व अथवा सम्यक् दृष्टि आत्माओं की स्थिति बाबत समाधान देने की कृपा करें।
जो कहा गया है कि सम्यक् दृष्टि २-३ होते हैं, यह सामान्य कथन है-अँगुलियों पर गिने जाने लायक। पर ऐसा मत समझना कि सम्यक् दृष्टि २-३ ही होंगे। एक सज्जन ने कहा कि ‘महाराज! एक अध्यात्म के प्रवर्तक ने इस बात की उद्घोषणा अपने प्रवचनों में की है कि सम्यग्दृष्टि २-३ होंगे’, तो हमने कहा ‘भैया दो-तीन होंगे तो इसमें एक तो वही होंगे जो बोल रहे हैं और १-२ उनके साथ वाले होंगे, बाकी तो कोई बचेंगे नहीं’। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं आज भी रत्नत्रय से शुद्ध बहुत से मुनि हैं, जो अपनी आत्मा का ध्यान करके देवत्व को प्राप्त करते हैं, इन्द्रत्व को प्राप्त करते हैं, लौकांतिक बनते हैं, वहाँ से च्युत हो कर के मोक्ष जाते हैं।
आचार्य कुन्दकुन्द की बात करते हैं, तो वे स्पष्ट रूप से बहुवचन में प्रयोग कर रहे हैं। तो जब यह बहुवचन की बात है, तो दो-तीन कहाँ से होंगे? यह एक सामान्य कथन है इसका यह आशय नहीं लेना कि आज २-३ ही सम्यक् दृष्टि होंगे। आज भी इस धरती पर अनेक जीव सम्यक् दृष्टि हो सकते हैं। पंचम काल के अन्तिम समय में एक मुनि, एक आर्यिका, एक श्रावक, एक श्राविका, ४ तो रहेंगे ही।
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