पद, गुण और आचरण में श्रेष्ठ कौन?

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शंका

धर्म क्षेत्र में पद, गुण और आचरण तीनों में से क्या महत्त्वपूर्ण है? एक काल्पनिक उदाहरण के माध्यम से समझना चाहूँगा। एक सन्त जिनके पास पद भी है, गुण भी है लेकिन आचरण में झूठ, चोरी, परिग्रह। एक ब्रह्मचारी पंडित जो अपेक्षाकृत पद छोटा, गुण में कम और आचरण में क्रोध, माया, लोभ और राग द्वेष से धर्म करना। एक श्रावक न पद, न ही गुण और आचरण भी उस योग्य नहीं लेकिन धर्म क्षेत्र में जब भी करें तो वह निष्छल भाव से करें तो श्रेष्ठ कौन?

समाधान

धर्म क्षेत्र में पद का भी महत्त्व है, आचरण का भी और गुण का भी महत्त्व है। तुमने पूछा श्रेष्ठ कौन है? जो तीनों में श्रेष्ठ है वही सच्चे अर्थ में श्रेष्ठ है। पद की उपलब्धि बहुत दुर्लभता से होती है और जिसको पद मिलता है, पद तब ग्रहण करना चाहिए जब पद अनुरूप गुण हो और जिस पद को लिया है, उसके अनुकूल हमें आचरण करना चाहिए तब उसकी सार्थकता है। मैं मुनि हूँ, मैंने मुनि पद धारण किया, तो मेरे भीतर ये गुण मेरे गुरु को दिखे तब उन्होंने मुझे मुनि दीक्षा दी। चाहे जिसे मुनि नहीं बनाया जाता, ऐरे-गैरे का काम नहीं है, अगर बनेगा तो मुनि पद की हँसी करेगा। एक मुनि पद को धारण करने वाले के लिए पहले यह देखना चाहिए कि यह मुनि पद के लायक है या नहीं। जिसमें गुण हो, संभावनाएँ हैं, जिस समय मुनि दीक्षा होती है उस समय मुनि जैसा आचरण नहीं होता लेकिन उसकी संभावनाओं को तलाश करके मुनि व्रत दिया जाता है। इसमें गुण है कि नहीं, योग्यता है कि नहीं, सम्भावना है कि नहीं तो पद दिया जाता है उसके गुणों को देखकर तो जिसके पास पद हो, गुण स्वाभाविक रुप से होना ही चाहिए। गुण हीन को पद कभी नहीं देना चाहिए। अब पद है, गुण हैं लेकिन प्रमादी है, आचरण नहीं कर रहा है, तो ये पद के साथ अन्याय है, पद का दुरुपयोग है, उसे चाहिए कि वह अपने पद की गरिमा को बनाकर रखें। यदि वह खोता है, तो घोर आत्मवंचना करता है उसमें उसका नुकसान है। लेकिन यह मेरे आचरण का पता मुझे है तुम्हें क्या है? तुम तो मुझे बाहर से देखते हो, भीतर से क्या हूँ, मैं जानता हूँ। मुझे चाहिए कि मैं पद, गुण और आचरण तीनों में हंड्रेड परसेंट खरा उतरूँ, पर तुम्हें क्या दिखेगा? मेरे गुण दिखेंगे, नहीं दिखेंगे, मेरा आचरण जो मेरे तुम्हारे सामने वही दिखेगा। तुम्हें क्या दिखेगा, मेरा पद, इस दृष्टि से देखा जाए तो सबसे पहले पद को प्रणाम करना होगा और यह मानना होगा कि जिस पद को हम प्रणाम कर रहे हैं उसमें वह गुण भी हैं वो आचरण भी है। हाँ स्पष्टतया, खुल्लम-खुल्ला मेरी गुणहीनता दिखे, मेरा कदाचार दिखे, सुरक्षित दूरी बना लो कि ये इस पद के लायक नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई यह कह दे कि उच्च पद वाला अगर उसके अनुकूल आचरण नहीं कर रहा है, तो पद और आचरण सभी हीन सामान्य आदमी अच्छा है। उसका ग्रेड तो वही रहेगा, वह आगे नहीं बढ़ेगा। हमारे अन्दर गुण होना चाहिए, आचरण होना चाहिए और जो जिस पद की भूमिका में है उसे उसकी गरिमा का निर्वाह करना चाहिये।

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