सोलह क्या है और यह सोला की संख्या कैसे समझें?

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शंका

सोला शब्द का अर्थ क्या है?

समाधान

सोला शब्द का अर्थ देखा जाए तो नवधा भक्ति और सात गुण से मिलाने पर सोलह होते है। सोलह से ‘सोला’ हो गया। सोला फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है, आग या अंगार। अंगार या आग शुद्धता का प्रतीक होता है। तो ‘सोलह’ और ‘सोला’ मिल गया। 

सोला शब्द को दूसरे तरीके से भी कहते हैं; द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव- ये चार शुद्धि होती हैं इसमें अन्न की शुद्धि, काय शुद्धि, जल, व्रत की शुद्धि आदि शुद्धियों को मिला देते हैं तो सब मिलाकर के सोला होते हैं। मेरे विचार ये से सोला शब्द रूढ़ हुआ है वो नवधा भक्ति और सात गुण में समाहित है। दान की हमारे यहाँ जो विधि है उसमें बताया है कि 

नव पुण्यहि प्रतिपत्ते सप्तगुण समाहितेन शुद्धेन, 

पंचसुनानाम आरम्भानाम आर्याराम इष्यते दानम्। 

नौ पुण्य यानि नवधा भक्ति और सात गुणों से युक्त होकर दान दिया जाता है, तो नौ और सात का योग सोलह होता है। सोला का मतलब केवल वस्त्र आदि की शुद्धि ही नहीं सोला शब्द बहुत व्यापक है। लोग आजकल ठीक ढंग से ध्यान नहीं देते हैं। 

नवधा भक्ति में क्या है? मुनिराज को आप आहार देते हैं तो सबसे पहले पडगाहन करते हैं, तीन प्रदक्षिणा देते हैं, फिर उनको अपने घर ले जाने के उपरान्त उच्च आसन पर विराजमान करते हैं, फिर उनके चरणों का प्रक्षालन करते हैं, फिर उनका पूजन करते हैं, फिर प्रणाम करते हैं। इसके उपरान्त मन, वचन, काय की शुद्धि, आहार, जल की शुद्धि ये सब मिलाकर नौ होते हैं। स्नान करो तो उत्तम, स्नान नहीं कर पाओ तो आप गीले कपड़े से अपने शरीर को पोंछ लें, और अन्दर एवम् बाहर दोनों प्रकार के वस्त्रों को बदलना चाहिए। केवल बाहरी वस्त्रों को बदलने से आपकी शुद्धि नहीं है। इसी प्रकार शरीर में किसी प्रकार का कोई अशुद्ध-पदार्थ नहीं लगा होना चाहिए। सुबह से आपने तरह-तरह के cosmetics लगा रखें हैं, nail paints (नाखुनी) आदि भी लगा रखे और आहार के समय आपने कपड़े बदल कर आहार दिया तो ये आपकी काय शुद्धि खण्डित हो गयी, ऐसा समझना चाहिए। आप शुद्ध रहें। 

शरीर में फ़ोड़ा-फुन्सी आदि कोई चीजें हों तो उनका भी परहेज करना चाहिए। उनसे अपने आप को बचाकर के चलना चाहिए। काय शुद्धि रखने के बाद इधर-उधर छुआछुत नहीं करनी चाहिए। सड़क पर भी देख भाल के चलना चाहिए। गंदगी युक्त स्थानों का स्पर्श नहीं करना चाहिए। तो ये मन, वचन, काय शुद्धि हुई। फिर आप जो आहार, जल शुद्ध है जो आपने बनाया है वो पूरी तरह शुद्ध होना चाहिए। आप अगर शुद्धि बोलते हैं, तो शुद्ध रखने का दायित्व आपका है। उसका दृढ़ता से पालन करें। आपने शुद्धि तो बोल दी, पर शुद्धता नहीं रखी तो दोष आपका है। अन्दर से अपार भक्ति का भाव होना चाहिए। आज धन्य हो गया मैं मेरा जीवन कृतार्थ हो गया, ऐसे सत्पात्र का दान देकर मैंने अपनी गृहस्थी को सार्थक कर लिया, इस तरह के भाव होने चाहिये, विवेक या विज्ञान पूर्वक आहार दान दो। 

कैसा पात्र आया है? उसके शरीर की स्थिति कैसी है? उनका स्वास्थ्य कैसा है? इन सब का विचार करके, विवेक पूर्वक दान देना चाहिए। बूढ़े महाराज को चना खाने के लिए दे दो और जवान महाराज को दाल में रोटी गलाकर खिलाओ तो मामला गड़बड़ हो जायेगा। विवेक होना बहुत जरूरी है। कई बार लोग विवेक हीनता का परिचय देते हैं; देखो गड़बड़ कैसी होती है। एक समय की बात है। मैं आहार करने के लिए गया। पहले दिन एक उपवास था दूसरे दिन पहले ग्रास में अन्तराय था। तीसरे दिन आहार करने के लिए गया एक भाई के हाथ में किसी ने मिर्ची की कटोरी पकड़ा दी। छोटी लौंग वाली मिर्ची और उसने एक चम्मच मिर्ची उठाकर पहले ही ग्रास में दे दी। दो उपवास हैं, और चम्मच भर उठा कर क्या दे दिया? मिर्ची। हमने कहा कि खाओ मिर्ची, इसी को मिठाई समझ कर खाओ। ले तो लिया लेकिन दिन भर burning (जलन) हुई। ये तो श्रावक का विवेक है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका ध्येय केवल देना होता है। क्या दे रहे है, क्यों दे रहे, हैं इससे कोई मतलब नहीं। बड़ा मुश्किल होता है। विवेक का बहुत अच्छे तरीके से प्रयोग करना चाहिए।

फिर है सन्तोष। मन में सन्तोष होना चाहिए। सन्तोष यानि हमने पात्र दान देने का भाव रखा, पात्र का लाभ हो तो भी और न हो, तो भी और खाली जाए तो भी शिकायत न करें। 

फिर है दया! जीव दया का पूरी तरह से पालन करना चाहिए। फिर क्षमा। किसी के द्वारा अपनी कोई गलती हो जाए तो उस गलती को नजरअंदाज करना चाहिए। चौका में ज़्यादा चीखना नहीं चाहिए। सातवाँ है अमात्सर्य। अन्य दाताओं के गुणों को सहन करना चाहिए उनके प्रति असहिष्णुता का भाव नहीं रखना चाहिए। 

ये नवधा भक्ति और सात गुण मिलाओ। ये असली सोला है। केवल कपड़े बदलने का नाम सोला नहीं है। इस बात का अच्छे से ध्यान रखना चाहिए। क्षमा यानि शक्ति के अनुरूप काम करें। क्षमा और शक्ति को कहीं-कहीं एक भी किया, और कहीं-कहीं नहीं भी किया है। अपनी शक्ति के अनुरूप, अल्प शक्ति वाला होकर भी, अपने दान से बड़े-बड़े दान दाताओं को भी आश्चर्य चकित कर दिया। इसका नाम शक्ति है। सामर्थ्य और सहनशीलता दोनों अर्थों में कह सकते हैं।

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