सकलीकरण का क्या अर्थ है?

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शंका

सकलीकरण का क्या अर्थ है?

समाधान

सकलीकरण होने के उपरान्त, शोरसूतक का कोई दोष नहीं लगता। मैंने ‘सकलीकरण’ की व्याख्या ग्रन्थों में पढ़ी है। उसमें लिखा है कि-‘मन की शुद्धि, वचन की शुद्धि, काय की शुद्धि, और कषाय की हानि- परमात्मा सकलीकरण की यही क्रिया है। बाकी बड़े-बड़े मन्त्रों के क्रियाकाण्ड तो केवल क्रियाकाण्ड ही हैं, उनसे कोई मतलब नहीं। मन-वचन-काय शुद्धि और कषाय की हानि हो गयी, तुम्हारा सकलीकरण हो गया, संकल्प है। आपने विधान के लिए, मन बनाया और आपने अपनी टिकट बना ली, रजिस्ट्रेशन करा लिया -आपका भाव-संकल्प हो गया। मात्र धागा बाँधने का नाम सकलीकरण नहीं है। अगर कोई मामला गड़बड़ हो गया, पर आप हृदय से संकल्पित हैं तो आपको कोई शोर-सूतक नहीं लगेगा। समझ गये! इसलिए आपको एक बात बताता हूँ, पूजा विधान आदि का कोई भी निमित्त बनता हो जिस दिन आप अपना मन बनाते हो उस दिन ही संकल्प ले लो, कि “मैं इस संस्थान में हर हाल में शामिल होऊँगा; टिकट मिलेंगे तो और नहीं मिलेंगी तो भी।” आपने संकल्प लिया, सूचना दी। संकल्प लेते समय कम से कम एक बार णमोकार मन्त्र पढ़ लो आपका टिकट पक्का। 

भैयाजी पूछ रहे हैं कि- ‘सकलीकरण के उपरान्त घर-गृहस्थी के काम से सम्पर्क तोड़ना चाहिए या नहीं?’ ऐसा तो कोई विधान नहीं। कितने दिन तोड़ोगे? घर पर रहोगे तो यहाँ आने के बाद तोड़ोगे, उस समय नहीं। एक बात और बताया हूँ, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के साल भर पहले तक ध्वजारोहण का विधान किया है, तो उतने दिन तक सारी प्रक्रियों से अलग थोड़े ही रहेंगे!

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